हुई सुबह सूरज निकला ,
हुआ रथ पर सबार ,
धीमी गति से आगे बढ़ा ,
दोपहर में कुछ स्फूर्ति आई ,
फिर अस्ताचल को चला ,
और शाम होगई ,
मन की बेचैनी और बढ़ गई ,
एकाकी सदासे रहता आया ,
ना कोई संगी नाकोई साथी ,
सूना घर सूना चौराहा ,
था बस तेरा इन्तजार ,
पर तू भी ना आया ,
सुबह से शाम यूंही होगी ,
बिना बात की सजा होगई ,
राह देख थक गई आँखें ,
मन पत्थर सा होने लगा ,
पर आशा की एक किरण ,
कहीं छिपी मन के अंदर ,
उसकी एक झलक नजर आई ,
जब दस्तक दी दरवाजे पर ,
होने लगा स्पंदित मन ,
देख तुझे अरमान जगे ,
मन को कुछ सुकून मिला ,
पत्थर पिघला मोम हुआ ,
सारी बेचैनी सारा गुस्सा ,
जाने कहां गुम हो गया ,
मेरी बगिया गुलजार कर गया |
आशा
,
aasha aanti rchnaatmk rchna he. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंजी हाँ -एक पल मन को बदल देता है -
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
आपका नाम आशा है और आपकी रचनाएँ सर्वदा आशा जगाती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सकारत्मक सोच को बढावा देती प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंsunder rachana........
जवाब देंहटाएंsubah subah sunder kavita padh kar maja aa gya
जवाब देंहटाएंbhut hi sunder
सुन्दर रचना ! मन में उत्साह जगाती एक सकारात्मक प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
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