15 मार्च, 2015

कतरनें


ईमान पर
बेईमान कहता
शोभा न देता |

सुख व् दुःख
जीवन के पहलू
जीने न देते |



काटे ना कटे
दिवस व रजनी
देख सजनी  |

लज्जा गहना
है हर महिला का
नहीं भुलाना |

विनम्र आँखें
मधुर सी मुस्कान
उसकी ही है |


बालों की शोभा
मोगरे का गजरा
प्रियतमा का  |

पानी आँखों का
है नूर चहरे का
मन मोहता |

कुछ विचार
कतरनें पन्नों की
व्यर्थ लगते |

जल व थल
लिए हाथ में हाथ
साथ रहते |

सेतु हो जातीं
सागर की उर्मियाँ
जल थल में |

शरद चन्द्र
अभिनव छटा है
मध्य रात्रि में |

समय कहे
शीशाग्र से पकड़ो
कहीं भागे ना |


मुट्ठी रेत की
फिसलती हाथ से
क्षण भर में |
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शरद चन्द्र
अभिनव छटा है
मध्य रात्रि में |

समय कहे
शीशाग्र से पकड़ो
कहीं भागे ना |


मुट्ठी रेत की
फिसलती हाथ से
क्षण भर में |


आशा

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