01 जून, 2016

ऐतवार उठ गया है



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मैंने सत्य के अलावा
कुछ न कहा
तूने ही मुझे झुटलाया
मैं जान नहीं पाया
क्या था तेरा इरादा
यदि थोड़ी  भनक होती
कुछ तो लिहाज करती
मुंह से नहीं कहती
इशारे से ही सही
मन की चाह बताती
मुझे भरम न होता
इतना प्रपंच न होता
मैं मौन धारण कर लेता
एक शब्द भी न कहता
पर तूने सब के समक्ष 
झूटा मुझे बनाया
मन को ठेस लगी
दिल पर गहरा घाव हुआ
जाने कब तक भर पाएगा
कहीं नासूर तो न हो जाएगा
पर तुझे इससे क्या
खैर जो हुआ सो हुआ
तेरी बेवफाई की
यादें न भूल पाऊंगा
ऐतवार उठ गया है
कैसे पुनः   पाऊंगा |
आशा







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