मेरी परिचितों की
बिसात
अलग से कुछ भी नहीं
है
मैं ही हूँ खुद की
पहिचान
कतरा कतरा जो छू गया
मुझे
वह मेरा अपना हो गया
अहम दूर तक न छू सका
जो भी मुझसे मिला
मुझमें विलीन हो गया
मंथर गति से आती मलय
मिट्टी की सोंधी
खुशबू
बारम्बार करती
आकृष्ट अपनी ओर
उन गलियों में जिनमें
बिताया अपना
कल मैंने
कदम थम जाते वहां
उम्र के अंतिम पड़ाव
पर आते ही
लौट कर आने लगा
बचपन
और बीते कल की यादें
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आशा
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