वह है आयना तेरे मन का
मन की छाया
तेरे चहरे पर पड़ती
मन में क्या चल रहा है
वही सत्य उगलती |
कोई भी आयना झूट नही बोलता
वही दिखाता है जो मन में होता है
वह कोई मुखौटा नहीं
जो बदले भाव दिखाए |
जो सच का आदर्श दिखाई देता उसमें
कितनी भी बात छिपाने की कोशिश हो
सत्य उजागर हो ही जाता इसके माध्यम से
सारे भेद खुल जाते उसमें झांकने में |
वही सत्य जो तुमने छिपाया जमाने से
आयने से छुपा न सके
कितना भी छुपाओ
उससे बच कर कहाँ जाओगे
मन के भावों के उजागर होने से
बच न पाओगे मन साफ रहेगा
तब कोई चिंता नहीं होगी
तुम्हारी छवि धूमिल न होगी |
आशा
सत्य भावपरक रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंवाह ! उम्दा सृजन !
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