जब भी उसने झांका चिलमन की ओट से
काली कजरारी आँखों की दृष्टि उस पर पड़ी
नजर मिली वह शरमाई चेहरा सुर्ख हुआ
देखते ही बनता था उस की मूरत को |
उसकी सूरत तो न देख पाया
पर छाया से ही संतुष्टि कर पाया
सुनी चूड़ियों की खनक पायलों की रुनझुन
अपने बहुत पास तक
पर हाथों से छू न सका |
सोचा वह दिन कब आएगा
जब इन्तजार होगा समाप्त
प्रिया के हाथ उसकी बाहों में होंगे
वह अपने को धनवान मानेगा |
आशा सक्सेना
कोमल रूमानी अहसासों से भरी प्यारी रचना !
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