है दूर तक कच्ची सड़क
पटी हुई पीले पत्तों से
पीले पत्ते गीत गाते गुनगुनाते|
चर चर की ध्वनि करते
पैरों तले रोंधे जाते
तेज हवा के साथ उड़ते
तेज हवा के साथ उड़ते
पर शिकायत नहीं करते|
सूर्य रश्मियाँ नभ से झाँकतीं
पगडंडी को नया रूप देतीं
पेड़ों पर आए नव पल्लव
प्रातः काल की धूप में नहाते
अलग ही नजर आते हरे भरे मखमल से |
प्रातः काल का यह मंजर
आँखों में बस गया ऐसा
जब भी पलकें बंद होतीं
मन उसी सड़क पर विचरण करता |
कहीं भी जाने का मन न होता
स्वप्न में भी उसी में रमा रहता
स्वप्नों में उसका स्थान हुआ ऐसा
कोई सपना पूरा नहीं होता उसके बिना |
घूमते कदम स्वतः ही उठ् जाते उस ओर
घूमते कदम स्वतः ही उठ् जाते उस ओर
अब तो हो गई है वह सड़क
एक अहम् स्थान स्वप्नों को सजाने की
उसके बिना अधूरा रहता हर सपना |
आशा