मैं तितली रंगों से भरी
ऋतुराज क्यूँ न खेले होली
बंधन है आलिंगन है
या मन का स्पन्दन है
आखिर है यह कैसा विधान
मैं खुद ही बेसुध हो जाऊँ |
फूलों भरी वादियों में
जब विचरण करती हूँ
इस फूल से उस फूल तक
पंख फैलाकर उडती हूँ |
बच्चे बूढ़े और सभी जन
मेरे रंगों में उलझे
मन भाया फूल मुझे चाहे
मुझ पर अपना प्यार लुटाये
पैरों में लिपट चिपट जाये
खुशबू से तन महका जाये |
फिर और तेज मैं उड़ती
सुरभि से सब को भरती
वासंती बयार मुझे
खींचे अपनी ओर
फूलों से लदे पेड़ भी
ललचाते अपनी ओर |
मैं प्याली रंगों से भरी
तरह-तरह के रंग सजे
फागुन के मीठे गीत सुने
ऋतुराज मिलन को तरस रहे |
जब मैं वादी में घूमूँ
फूलों के रंग चुरा लाऊँ
अपने पंखों पर लगा उसे
सब के मन रंगती जाऊँ |
मैं तितली रंगीन
सब के मन को बहकाऊँ
प्रत्येक फूल मुझे चाहे
अपने में भरना चाहे
पर मैं बंधन से रहूँ दूर |
मौसम में खुशियाँ भर कर
केवल मन स्पंदित कर
उनके मन को बहकाऊँ
मैं तितली रंगीन
खुले व्योम में उड़ती जाऊँ |
छोटा सा जीवन मेरा
फूलों में रमती जाऊँ
मैं तितली रंगों से भरी
प्रकृति की अनमोल छवि
ऋतुराज संग खेलूँ होली |
आशा
पैरों में लिपट चिपट जाये
खुशबू से तन महका जाये |
फिर और तेज मैं उड़ती
सुरभि से सब को भरती
वासंती बयार मुझे
खींचे अपनी ओर
फूलों से लदे पेड़ भी
ललचाते अपनी ओर |
मैं प्याली रंगों से भरी
तरह-तरह के रंग सजे
फागुन के मीठे गीत सुने
ऋतुराज मिलन को तरस रहे |
जब मैं वादी में घूमूँ
फूलों के रंग चुरा लाऊँ
अपने पंखों पर लगा उसे
सब के मन रंगती जाऊँ |
मैं तितली रंगीन
सब के मन को बहकाऊँ
प्रत्येक फूल मुझे चाहे
अपने में भरना चाहे
पर मैं बंधन से रहूँ दूर |
मौसम में खुशियाँ भर कर
केवल मन स्पंदित कर
उनके मन को बहकाऊँ
मैं तितली रंगीन
खुले व्योम में उड़ती जाऊँ |
छोटा सा जीवन मेरा
फूलों में रमती जाऊँ
मैं तितली रंगों से भरी
प्रकृति की अनमोल छवि
ऋतुराज संग खेलूँ होली |
आशा