01 नवंबर, 2018
31 अक्तूबर, 2018
बदलता मौसम
बदलता मौसम
करता आगाज
देता दस्तक घर के
दरवाजे पर |
चहु ओर फैली हरियाली
नील गगन तले
घर की कल्पना
हुई साकार
जब मिला रहने को
हरी भरी वादी में|
जहां तक नजर जाती
मन दृश्यों को समेट लेता
अपनी बाहों में
कहीं हाथों से
कहीं हाथों से
फिसल न जाएं वे पल
वहीं ठहर जाते तो
कितना अच्छा होता |
वृक्षों पर नव पल्लव आए
उनसे छू कर आती बयार
जब भी देती दस्तक
भर देती सिहरन तन मन में
भिगो जाती सहला जाती मेरे वजूद को
जितना प्रसन्न मन होता
ठहरना चाहता वहीं |
थी जो कल्पना मेरी घर की
अब हो गई साकार
मैंने किया नमन प्रभू को |
आशा
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