टपटप टपकतीं
झरझर झरतीं
धरती तरवतर होती 
गिले शिकवे भूल जाती |
हरा लिवास  पहन ललनाएं 
कई रंग जीवन में भरतीं 
हाथों में मेंहदी रचातीं
मायके को याद करतीं |
हाथों में मेंहदी रचातीं
मायके को याद करतीं |
सावन की घटाएं छाईं  
आसमान हुआ  स्याह 
पंछियों ने गीत गाया 
गुनगुनाने का जी चाहा   |
झिमिर झिमिर वृष्टि जल की 
ताप सृष्टि का हरती 
वर्षा की नन्हीं बूंदें 
थिरकती नाचतीं किशलयों पर|
थिरकती नाचतीं किशलयों पर|
वे हिलते डुलते मरमरी धुन करते 
हो सराबोर जल 
नृत्य में सहयोग करते
नृत्य में सहयोग करते
आनंद  चौगुना करते |
नहाती बच्चों की  टोली वर्षा में 
 है  यही आनंद वर्षा में नहाने का 
सृष्टि के सान्निध्य का |
 
