31 मार्च, 2020

पलाश



  बसंत ऋतु को कर विदा 
पतझड़ ने डेरा डाला
पत्ते पीले हो झड़ने लगे
फिर भी कुछ पौधों पर 
हरी हरी कलियों में से 
झांक रहे केशरिया पुष्प  
हाथों से यदि छू लिये  
हाथ पीले हो जाते  
अभी भी  स्रोत यही हैं
देहातों में केशरिया रंग के     
 घर पर इनसे ही रंग बना कर 
होली पर खेलते रंग 
प्रियतमा के संग 
हो जाते अनंग
 खुशीयों में रम के
फूलों की होली के
 हैं ये प्रमुख हमजोली 
ये  होते बहुत उपयोगी  
दवा में उपयोग किये जाते 
श्वेत पुष्प पलाश के 
तंत्र मन्त्र साधना में 
काली शक्तियों को दूर करने में
पाते सफलता साधक
  केशरिया श्वेत पुष्पों के उपयोग से  |
आशा

26 मार्च, 2020

कोरोना से बचो


o   
कोरोना से बचो दूरी सबसे बनाओ
कोरोना का भय न पालो
सामाजिक दूरी को अपनाओ
स्वच्छाता का पालन करो
हाथ बार बार धो कर

किसी भी वस्तु को छुओ
घर में रहो व्यर्थ ना डोलो
सतर्कता है आवश्यक यह न भूलो
प्रतिबंध यूं ही नहीं थोपे जाते
उनके मूल्यों को समझो
 
हित और देश  की चिंता करो
सख्ती से नियमों का पालन करो
सरकार का सहयोग करो |
आशा 

25 मार्च, 2020

मन का कहा


मन का कहा स्वीकार किया है
उसने  दिल का दामन बचाया कहाँ है
प्रभू से कुछ भी नहीं चाहा है
मोहब्बत का फलसफा सुलझाया  कहाँ है |
अभी तो हाथ जोड़े हैं नमन किया है
मंदिर में भोग लगाया कहाँ है
अभी तो स्वच्छता की है मंदिर  की    
बुझते दीपक को जलाया कहाँ है |
दी है परीक्षा प्रभु के समक्ष
नतीजे की अपक्षा को छिपाया कहाँ है
  वह भी राह देख रहा है  
ईश्वर को भोग चढ़ाया कहाँ है |
 है मन के भावों की  पारदर्शिता  आवश्यक
उसने  किसी को झुटलाया कहाँ है
प्यार प्रेम वह  नहीं जानती
उसने मन के भावों को छिपाया कहाँ है |
आशा 

24 मार्च, 2020

कोठरी काजल की


  है सियासत की दुनिया चमक दमक की
बड़े बड़े प्रलोभन फैले यहाँ वहां
जिसने भी दूरी रखी इससे
 बहुत बेचैनी हुई उसे
मन ही मन दुख से हुआ संतप्त
क्या लाभ ऐसी दुनिया का
भीतर कुछ और बाहर कुछ हो 
सत्य कहीं दुबका हुआ हो
हर चहरे पर मुखौटा लगा हो
स्वयं की पहचान कहीं गुम हो जाए
है वहां एक बड़े दलदल का नजारा
जो पंक में घुसता गया लौट नहीं पाया
ऐसे क्या उपहार मिल गए
 राजनीति की दौड़ में
छोटे बड़े का लिहाज नहीं रहा यहाँ 
 शालीन वार्तालाप के लिए तरसे
दूरदर्शन पर भी बहस ऐसे दीखती है
मानो शेर अभी  झपटेगा  शिकार पर
दूसरा मैमने सा गिडगिडा रहा हो
बच्चे तक कहने लगते हैं
क्या इन में तमीज नहीं
इनकी मम्मीं ने क्या
 कुछ नहीं सिखाया इनको
सियासत का गलियारा
 काई से भरा हुआ है
जितना भी सम्हल कर चलो
 पैर फिसल ही जाते हैं
गिरने पर सहारा दे कर
उठाने वाला कोई नहीं होता
सियासत है कोठारी काजल की
 कोई न बचा इससे
जो भी भीतर  गया
बच  न पाया  कालिख  से | 
आशा