19 दिसंबर, 2023

कभी किसी अभाव का हुआ न एहसास


सांस रुकने के पहले शेष काम करना हैं

 कोई कार्य अधूरा ना रहे यही सोचना है 

उन्मुक्त जीवन जिया है अब तक बंधन नहीं चाहिए कोई

 यही है प्रार्थना प्रभू से |

 किसी से क्या चाहिए जबअपनों ने  ही साथ ना  दिया हो

कभी दो शब्द अपनेपन के सुनने को कान तरसे |

हम तो घर से दूर रहे किसी से ना की अपेक्षा कोई

अपने में सक्षम रहे जीवन भरा कठिनाइयों से

सुख के पल देखे जरा से डेरा डाला दुःख ने

 बड़ी उलझने आईं एक बात समझ में आई

सुख के सब साथी होते दुख में  कोई नही होता अपना |

अब घबराने से क्या लाभ होगा जब अकेले ही जीवन भर रहना है

जब तक रहा साथ तुम्हारा जीवन में विविध रंग रहे

कभी किसी अभाव का हुआ ना एहसास 

कोई कार्य अधूरा रहे या नहीं  ना रहे यही सोचना है |

उन्मुक्त जीवन जिया है अब तक

बंधन नहीं चाहिए कोई

 और यही है प्रार्थना प्रभू से |

आशा सक्सेना         

 

यही सोचा दिल से चाहो

 


तुमने की आराधना जब मन से

वह  कृपावन्त हुआ

पर फल की आशा न की जब

अति प्रसन्न हुआ  |

जैसे किसी ने ठीक कहा 

 और मेरे मन ने यह मान लिया 

बिना  मांगे मोती मिलते

मांगे मिले न भीख |

जो सोचो सच्चे मन से चाहो  

प्रभु की नजर पड़ जाए अगर   

वह  हाथ बढ़ाना चाहे

यदि दृढ़ आस्था रही तुम्हारे मन में |

तुम मन से सच्चे रहो  

कोई कमी नहीं छोड़ी तुमने

हुई  कृपा ईश्वर की  तुम पर  

यही दिया तुम्हें खुले हाथ से उसने |

अपना हक़ न समझो इसे तुम

यदि जो मिला उस पर गर्व किया  

यही तुम्हारी भूल समझ कर 

उसने पहली गलती मान

 क्षमा किया तुमको |

कभी करना नहीं गुमान

अपनी किसी प्राप्ती पर 

तुम भी अनजाने में

 उसे याद करते हो दिल से

किसी का बुरा नहीं चाहते

यही विशेषता है तुममें |

तुम हो उसकी पहली पसंद

है वह  मोहित तुम पर

तुम्हारा व्यवहार है सब से जुदा

             हो सब से भिन्न

             सफल रहो जीवन में |

                  आशा सक्सेना 

नौक झोंक


    

 

 

आया सावन का महीना

बाग़ में झूला डलवाया उसने 

अपने भैया से नीम के पेड़ पर 

लकड़ी की पटली रस्सी  मंगवाई बीकानेर से |

खूब ऊंची ऊंची पेंग भरी

 बड़ा आनंद आया झूलने में |

सहेली को लेने आए जीजा जी

वह चली ससुराल खुशी से

वह  देखती रही  राह

 अपने प्रियतम की |

आते ही उल्हाने दिए

 क्यों न याद आई उसकी 

वह  कब से राह देख रही थी 

कैसे भूले राह घर की |

 कुछ दर की नौक झोंक शिकायतें 

फिर मेल मिलाप हुआ धीरे से 

वह जल्दी से तैयार हुई 

अपनी ससुराल जाने के लिए |

आशा सक्सेना 


18 दिसंबर, 2023

हाइकु

 

१-यह क्या किया

तुमने याद किया

क्या  ठीक किया 

२- तेरी बंसी ने 

 मन मोह लिया है

  सुनी जब से

३-पीली कसौटी

काली कमली ओढी

चले वन को

४-राधा  नाचती

-कान्हां की राह देखती

कदम तले

५-ऊधव आए

दी  शिक्षा  गोपियों को

मोह न पालो   

६-बाल गोपाल  

दिखते चहु ओर

गोपिया खुश 

७-गोकुल आए

पालने में झूलते

नन्द  लाल हैं 

17 दिसंबर, 2023

राह भटका एक तोता




 राह  भटका एक पक्षी 

आ कर बैठा बाहर दीवार पर 

जैसे ही दरवाजा खुला खिड़की का 

वह आ बैठा उसे के द्वार पर |

जब किसी ने ध्याँन न  दिया 

आवाज लगाई मिठ्ठू ने मधुर 

बोला मिठ्ठू मिठठू मिठ्ठू

सब को आकृष्ट किया उसने |

फिर उड़  कर  आ बैठा 

मंदिर के  दरवाजे पर 

सब ने सोचा भूखा  है 

लाकर दिया उसे अमरुद |

बहुत प्रेम से खाया उसने 

 जब संतुष्ट हुआ उड़ चला

 दरवाजे पर बैठ कर

 मीठी तान सुनाई सब को |

रात हुई वह सो रहा वहीं पर 

प्रात की मंद हवा ने उसे जगाया 

उसने अपने मधुर कंठ से 

हमें जगाया गाकर 

सुबह कि चाय पर 

हमने बिस्कुट लिया हाथ में 

उसकी ओर खाने को बढाया 

 बड़े प्यार से चोंच से पकड़ा

 और स्वाद ले  कर खाया उसने||

 फिर से उसे रौशनी  दिखी 

शायद किसी ने 

 प्यार से आवाज दी उसे 

वह  पंख फैला कर  उड़ चला

 अनजानी  राह पर 

हम देखते ही  रह गए

वह  फिर लौट कर न आया 

कई दिन भर उसे याद किया

 मन को दुःख पहुंचाया 

जब आगत को देखा जाते |

आशा सक्सेना 


16 दिसंबर, 2023

आखिर कब तक राह देखते

 उसने वादा किया थाऔर न लौटा 

 मुझे धोखा दिया 

कहाँ खोजूं कहाँ जाऊं 

उसको खोजने  के लिए |

उसने जो पता बताया था

 फोन नम्बर दिया था 

वे दौनों  तो झूटे निकले  |

वहां जाकर पूंछा लोगों से

 कोई बता न पाया 

मन बहुत  बोझिल हुआ 

फिर खोजने का मन नहा |

जब गंभीरता से सोचा 

अपने से प्रश्न किया 

उसे ही हल करना चाहा 

तब असलियत जान पाया |

कितनों को गुमराह किया था उसने 

 |जाने कितनों को गुमराह किया था उसने 

उसका सच कोई नहीं जान पाता था |

सभी को गुमराह

 कर देता था वह अपनी मीठी बातों से

 जब उसे खोजा जाता  

उसका कोई पता नहीं मिल पाता था 

लोग खोजते रह जाते थे  |

राह देख हार जाते  थे 

उम्मीदों पर कैसे टिकते 

बहुत दुखी होते थे 

आखिर कब तक राह देखते  |

आशा सक्सेना 

15 दिसंबर, 2023

अजनवी कहाँ से आया

 

अजनवी कहाँ से आया 

किसके पास ठहरा 

किस कारण से

 किसी ने ज़रा भी ध्यान न दिया|

उसने केवल अपना मतलव साधा

यह भी किसी को न बताया

आगे बढ़ने लगा 

मुस्कान  से आनन भरा|

खुशी भरी हर अंग पर

कारण कोई भी जान न सका

कितना भी जानना चाहा

वह चल दिया  |

नहीं किसी ने ध्यान दिया

लिया दिया कुछ तो रहा

उसकी यादों में एसा  बैठा  

निकल न पाया |

सारी बाते मन में बसी

कैसे उनसे बचा जाए

कोई उपाय न हो पाए

वह घबराए बेचैन हुआ जाए |

आशा सक्सेना