13 जून, 2014

एक रथ दो पहिये (पितृ दिवस पर )





एक रथ के दो पहिये हैं
पिता और माता
दोनो खींचते जीवन रथ
समय साक्षी होता
रथ चलता जाता
ऊर्जा किसकी कितनी
क्षय होती वही जानता |
पिता की महिमा
बच्चों से ज्यादा
कोई समझ न पाता
बिना पिता के
 कोइ कार्य
 सफल ना होता
पिता पिता है
उसका स्थान
 कोई ना ले पाता
महानता उसकी देखो
 कभी एहसान नही जताता |
तभी तो महिमा उसकी
ताउम्र भूल न पाते
हर छोटे बड़े लम्हे में
पिता सदा याद आते |

12 जून, 2014

बाई पच्चीसी





तीस दिन के तीस किस्से
काम बाली बाई के
आप भी अनभिज्ञ न होंगे
सूरतेहाल से |
होती सुबह झूठ  से
झूठ की ही खाती
एक बात भी सच न होती
सहायक केवल नाम की |
छुट्टी मनाने के चक्कर में
किसी न किसी को नित  मारती
फिर उसका नुक्ता करती
जीवन मस्ती से गुजारती |
कटोत्रा पैसे का मंजूर नहीं
देती धमकी काम छोड़ने की
आए दिन उधार मांगती
पर चुकाने की कोई तिथी नहीं |
वह चाहे कितनी मुखर हो
यदि भूले से कुछ मुंह से निकला
जान सांसत में डालती |
है महिमा उसकी अनूठी
सदा त्रास देती रहती
काम  ठीक से कभी न करती
लगती बहुत बेकाम की |