04 अगस्त, 2014

मशीन और मानव









एक मशीन कलपुर्जे अनेक
तालमेल सब में ऐसा
वह सतत सेवा देती
पूरी क्षमता से कार्य करती |
धीरे धीरे पुर्जे घिसते
कार्यक्षमता प्रभावित होती
चाहे जब रुक जाती
चलने में नखरे लगाती |
समय समय पर सेवा चाहती
रखरखाव यदि अच्छा होता
ठीक ठाक बनी रहती
अधिक समय तक सेवा देती |
हाल मनुज का यदि देखें
बहुत साम्य दिखाई देता
उसे भी उपचार चाहिए
आये दिन अवकाश चाहिए |
एक शरीर अवयव अनेक
जब तालमेल आपस में रहता
चंचल चपल बना रहता
जीवन सहज सरल होता |
धीमी गति से वय  बढ़ती
पुर्जे धिसते टूट फूट होती
शरीर चकित थकित सा
सोचता यह क्या हुआ |
कार्य क्षमता धटने लगी
बीमारी खोज ली उसने
बुढापा चुपके से आता है
पर परिवर्तन बड़े लाता है |
बीमारी वृद्धावस्था की
 है आम सभी में
जिसे लग जाती है
जान ले कर ही जाती है |
उसे भी अकारथ  मशीन सा 
बेकार समझा जाता है
सामान्य जीवन के लिए
 अवांछित हो जाता है |

02 अगस्त, 2014

मन की चाह






मन क्या चाहता 
व्यक्त न कर पाता 
अपलक निहारता रहता
क्रम सृष्टि का निश्चित
सुबह होते ही जीवन में रवानी
धीरे धीरे रफ्तार बढ़ना
फिर शिथिलता और रात को थमना
निश्चित क्रम का एहसास
तक नहीं किसी को
ना ही कोई व्यवधान या घमासान
 की चाहत जीवन क्रम में
पर एक बिंदु पर आकर
मन शांत स्थिर होने को बेकरार
यही है जीवन का सत्य
जिसे जानना सरल नहीं
वही स्थिति पहुंचाती उस तक
होता जाता लीन उसी में
तब संसार तुच्छ लगता
मानसिक बल लिए साथ
शून्य में समाना चाहता
परम गति पाना चाहता |
आशा

31 जुलाई, 2014

उसे तो आना ही है






मुडेर पर बैठा कागा
याद किसे करता
शायद कोई  आने को है
दिल मेरा कहता |
जल्दी से कोई चौक पुराओ
आरते की  थाली सजाओ
किसी को आना ही है
मन मेरा कहता |
तभी तो आती  हिचकी
रुकने का नाम नहीं लेती
फड़कती आँख
 शुभ संकेत देती|
कह रहे सारे शगुन 
द्वार खुला रखना 
ढेरों प्यार लिए 
कोई आने को है |
हैं क्या ये  संकेत ही 
या मन में उठता ज्वार 
कितने सही कितने गलत 
 आता मन में विचार |
आशा




30 जुलाई, 2014

तीज



रंगरेजवा
लहरिया रंग दे
है तीज आज |
सुख सौभाग्य
सम्रद्धि का त्यौहार
मनाएं आज |
ओ सावरिया
गौरी मंगला तीज
सावन लाया |
आया रे आया 
हरियाला सावन 
झूलती झूला |

आशा