09 जुलाई, 2015

ग्रहण


 व्यापम घोटाला क्या है के लिए चित्र परिणाम
उन्नति को ग्रहण लगा
तम और गहराया
जिससे उभर न पाया
रात दिन भयभीत रहता
कौन बैरी हो गया  
किसी का सुख देखा न गया
काँटों से स्वागत किया
प्यार तो बरसाया नहीं
कर दी वृष्टि ओलों की
तोड़ दी कमर
 छोड़ी ना कोई कसर
घोटालों की पोल खोली
यहाँ तक भी ठीक था
पर क्या यह गलत न था  
गेहूं के साथ घुन भी
पिस रहे थे 
परीक्षाएं निरस्त हो गईं 
सारी महनत व्यर्थ गई 
उन्नति मार्ग बाधित हुआ 
बड़ी कठिनाई से फार्म भरा था 
वही उधारी शेष  है 
अब कैसे फार्म भरा जाए
सोचने के सिवाय 
और ना कुछ शेष है
स्वप्नों का जाल टूट गया 
अब भ्रम में जी रहा है 
शायद कोई चमत्कार हो 
इस ग्रहण से छुटकारा हो |
आशा





07 जुलाई, 2015

सत्य आज की दुनिया का


अपाहिज एक बोझ के लिए चित्र परिणाम
 आज जानी सच्चाई जिन्दगी तेरी
सुख में सभी साथ थे
अब कोई नहीं
स्वस्थ थी तब घर सारा
मेरा हुआ करता था
गिले शिकवे न थे
ना शिकायतों का
 अम्बार रहा करता था
आज स्पष्ट हर बात
दर्पण में दिखाई  दे रही
अधिकार जीने का
अक्षम को  नहीं
जीवन जीना सरल नहीं
दुनिया है झूठे स्वप्नों की
सत्य बहुत कटु होता है
जीवन में प्यार नहीं
केवल समझोता होता है
है मतलब की सारी दुनिया 

काम होता सब को प्यारा 
अक्षम नहीं किसी काम का
सच्चाई समक्ष है आज
लम्बी बीमारी सहन न होती
आईने में अक्स दिखाती
दो चार दिन सब सहते
फिर किनारा करने लगते
आइना सच ही कहता
अपना ही बिम्ब
 पहचाना न जाता
अक्षमता का बोध कराता |

04 जुलाई, 2015

ऐसी भूल क्यूं ?


सैलाब भावनाओं का के लिए चित्र परिणाम
भावनाओं के बहाव में
की पैठ गहरे में
अमूल्य रत्न संचित किये
समेटे अपने आँचल में |
थे अथाह नहीं चाहते
समाना फैले आँचल में
उथल पुथल हुई
बाहर आने की होड़ में |
बेजोड़ शब्द हाथ बढाते
उन्हें  सहारा देते
वे प्रगट  होते
नए से  आवरण में |
मन में उठते शब्द जाल  में
 उलझते ऐसे
मन में मलाल न रहता
कि न्याय उनसे न हुआ |
पर कुछ रह ही जाते
जाने अनजाने में
चूक हो ही जाती
न्याय न हो पाता  |
है विषद संग्रह भावों का
हुई चूक का एहसास तक न होता
पर जब भी  होता
मन विचलित हो जाता |
इतनी सतर्कता बरती
फिर ऐसी भूल क्यूं ?
भाव कहीं गुम हो जाते
मन के किसी कौने में
दुबक कर सो जाते |
आशा