14 सितंबर, 2015

उदासी


शमा जलती
 महफिलें सजतीं
 पर न जाने क्या
 मन में चुभता
उदासी का मुखौटा
उतरना न चाहता
खुशी से परहेज रहता
चांदनी की चूनर ओढ़
 स्वप्न  कभी सजाए थे
तारों भरी रात में
जो लम्हें बिताए थे
निगाहों में ऐसे बसे
आज भी सता रहे हैं
उत्पात मचा रहे हैं
पेड़ों से छन छन कर
आती चांदनी ने
 राह खोज ही ली थी 
चाँद की  अटखेलियाँ
 जल की चंचल लहरों से
आज भी वही हैं
कोई भी बदलाव नहीं
 पर परिवर्तन है  उसमें
सोच बदल गया है
ठहराव आ गया  है  
घूमना शबनमी रात में
 बहुत सुकून देता था तब
पर अब नहीं
प्यार भरी अदाओं से
शरारती निगाहों से
हाथों से मुंह छिपाना
बांह  छुड़ा दूर जाना
लुका छिपी तब की
आज भी न भूल पाती
खुद को अधूरा पाती
किसी की भी नज्म हो
खोई खोई रहती है
दाद भी न दे पाती
उदासी बढ़ती जाती |
आशा
  



12 सितंबर, 2015

महिमा हिन्दी की


मातृभाषा के लिए चित्र परिणाम :-
हैं हिन्द के निवासी
कहलाते भारत वासी
पर प्रभाव गया न अब तक
अंग्रेजों की संगत का
हिन्दी बोलने में झिझकते
इंग्लिश में बातें करते
सही शब्द ना मिलने पर
शर्मसार होने लगते
 है शान की बात आज 
कॉन्वेंट में शिक्षा लेना
जो वहां नहीं पढ़ते
अपने को हेय  समझते
है संगम भाषाओं का हिन्दी
शब्दों का समुन्दर हिन्दी
विभिन्न भाषाओं से आये
 या हों आंचलिक
सभी शब्द समाए इसमें
हिन्दी समर्द्ध हुई इनसे
चाहे जितनी भाषा सीखें
जब तब उनका उपयोग करें
पर हो शर्म हमें कैसी
हिन्दी के उपयोग में 
समर्द्ध इसे करने में |

11 सितंबर, 2015

हिन्दी

:
हिन्दी है हिन्द की बिंदी ,मस्तक पर सुहाती |
भारत माँ के माथे पर ,वह बेमिसाल लगती ||

सहज सरल मधुर भाषा ,अपनापन दर्शाती |
जब उपयोग में आती ,मन में मिठास भरती ||


हिन्दी की निंदा ना करो ,प्रेम से पोषित करो |
जनमानस में बसी है ,उसे उचित स्थान दो ||

भोर का सपना लगी ,हमें हिन्दी की  गरिमा |
 कोई सवाल ना रहा  ,साकार हुआ सपना  ||

आशा

08 सितंबर, 2015

तोड़ कमियों का


समस्या का समाधान के लिए चित्र परिणाम
कमियों को मैं क्या गिनाऊँ
 लगता असंभव गणन उनका
हल कोई नहीं दीखता
 उनसे उबरने का
यही क्या कम है
की  अहसास मुझे है
उनसे उत्पन्न समस्याओं का
जब से है वे साथ 
उथल पुथल मन में रहती
बेचेनी बनी रहती
हल तब भी  न मिलते   
किये प्रयास व्यर्थ जाते  
समय बिगड़ता फिर भी  
तोड़ उनका न निकला  
यही बात मुझे सालती
कुछ कर नहीं पाती
कितना भी अच्छा सोचूँ
कहीं चूक हो ही जाती
रेत  हाथों से फिसल जाती  
कमियाँ हावी होने लगतीं
 पश्च्याताप सच्चे मन से
होता तोड़ माना
वह भी न कर पाती
मन मसोस कर रह जाती |
आशा