16 मार्च, 2016

ऐसा भी होता है


kabhii shaam kabhii dhoop के लिए चित्र परिणाम
रूठने मनाने में
 उम्र गुजर जाती  है
 शाम कभी होती है
 कभी धूप निकल आती है
 चंद दिनों की खुशियों से
जिन्दगी सवर जाती है
चाँद तारों की बातें
महफिलों  में हुआ करती हैं
जिनके चर्चे पुस्तकों  में
भी होते रहते हैं 
सब भूल जाते हैं 
उनके अलावा भी
 है बहुत कुछ ऐसा 
रौशन जहां करने को 
मन के कपाट खोलने को 

जिसके बिना मंदिर सूने 
है वही जो मन को छू ले
जंगल में मंगल चाहो तो
वहां भी कोई तो है 
अपनी चमक से जो
 उसे रौशन कर जाता है
भव्य उसे बनाता है
कारण समझ नहीं आता
उनपर ध्यान न जाने का
 माध्यम लेखन का बनाने का
बड़े बड़ों के बीच बेचारे
नन्हे दीपक दबते जाते
जुगनू कहीं खो जाते
अक्सर ऐसा होता
 उन्हें भुला दिया जाता 


उन पर कोई अपनी

कलम नहीं चलाता |
आशा 
 









10 मार्च, 2016

एक फोजी की होली

सरहद पर फाई के लिए चित्र परिणाम
बाल अरुण की स्वर्णिम किरणें 
यहाँ हैं बर्फ की चादर पर 
हिम बिंदु भी यदाकदा छू जाते 
मेरे तन मन को 
एहसास तुम्हारा होता 
फागुन के आने का होता 
पर हुई छुट्टी निरस्त 
आना संभव ना होगा 
राह तुम मेरी न देखना 
इन्तजार मेरा ना करना 
मुझे पता है तुम रो रही हो 
डबडबाई आँखों से 
बहुत कुछ कह रही हो 
अरे तुम फौजी की पत्नी हो 
मुझ से भी जांबाज 
विचलित क्यूं हो रही हो 
सीमा पर आने के पहले 
तुमने ही बढाया था मनोबल 
कहा था होली होगी लाल रंग की
बहता हुआ रक्त होगा 
पर मन में मलाल ना लाना 
अपने ध्येय पर अटल रहना 
सौहार्द्र का सम्मान करना 
आज तक तुमसे किये
 वादे  को भूला नहीं हूँ 
कठिन मार्ग भी मुझे 
लगते व्रन्दावन की गलियीं 
आतंकी  रक्त की  खेलते होली 
अन्य रंग नहीं हैं तो क्या 
गुलाल का अम्बार लगा है 
मै ध्येय से विचलित नहीं हूँ 
है लक्ष्य एक ही मेरा 
जियूँगा देश   हित के लिए 
मरूंगा सीमा सुरक्षा के लिए 
ओ मेरी भोली  प्रिया 
अपने वादे  पर अटल रह
हर मानक पर खरा उतरूंगा |
आशा