03 जुलाई, 2010

क्षितिज

है अनंत यह आसमान ,
इसका कोई छोर नहीं ,
दूर क्षितिज में जब भी देखा ,
धरती आकाश को मिलते देखा ,
जब अधिक पास जाना चाहा ,
उनको दोराहे पर पाया ,
यह तो केवल भ्रम ही है ,
कि क्षितिज दौनों को मिलाता है ,
सारी दुनिया यही समझती है ,
यह वही जगह है ,
जो पृथ्वी आकाश की मिलन स्थली है ,
जिंदगी का क्षितिज भी ,
न कोई खोज पाया ,
यह कल्पना से परे ,
एक उलझी हुई पहेली है ,
जिसने उसे हल करना चाहा ,
खुद को और उलझता पाया |
आशा

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ! जीवन का नाम ही है बिना थके अनबूझी पहेलियों को सुलझाना ! जो थक गया वो हार गया ! सुन्दर रचना !

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  2. सच है ..ज़िंदगी क्षितिज के समान....जो दिखता है वो होता नहीं...

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  3. वाह जी वाह्……………ज़िन्दगी की हकीकत बयाँ कर दी।
    कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।

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