31 जुलाई, 2010

फिर मृत्यु से भय कैसा

होती अजर अमर आत्मा
है स्वतंत्र विचरण उसका
नष्ट कभी नहीं होती
शरीर बनता घर उसका
पर शरीर होता  नश्वर 
जन्म है प्रारम्भ
तो मृत्यु है अंत उसका
अंत तो आना ही है
फिर मृत्यु से भय कैसा
सांसारिकता में लिप्त
मद मत्सर से भरा हुआ वह
वर्तमान में जीता है
पर मृत्यु से डरता है
है हाल बुढापे का ऐसा
चाहे जितनी उम्र हो जाए
जीने का मोह नहीं छूटता
आकांक्षाएं होती अनेक
जितनी भी पूरी की  जाएँ
कुछ शेष रह ही जाती हैं
बल देती जीने की चाहत को
रोग यदि कोई लग जाए
वह हजार इलाज करवाए 
पर मरना नहीं चाहता
आख़िरी सांस तक जीने की आस
आँखें बंद होने नहीं देती
जीने की तमन्ना रहती है
यह सभी जानते हैं
एक दिन तो जाना ही है
पर माया मोह कम नहीं होते
बल देते  जीने के प्रलोभन को
यदाकदा जब सोच बदलता 
अध्यात्म की ओर खींचता 
यदि मन में स्थिरता आ जाए
माया मोह छूट जाता है
तब विश्रान्ति का
वह अनमोल पल आता है
अपार शान्ति छा जाती है
आत्मा स्वतंत्र हो जाती है
फिर मृत्यु से भय कैसा
यह तो एक सच्चाई है |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. तब विश्रान्ति का ,
    वह अनमोल पल आता है ,
    अपार शान्ति छा जाती है ,
    आत्मा स्वतंत्र हो जाती है ,
    फिर मृत्यु से भय कैसा ,
    यह तो एक सच्चाई है |
    ..mritu Shaswat satya hai ..
    ek din sabka esse sakshatkaar hota hai.. phir jane kyun aadmi guman karta hai..
    bahut saarthak chintan se bhari kavita..
    haardik shubhkamnayne

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  2. मृत्यु से भय कैसा ,
    यह तो एक सच्चाई है |

    कुछ अलग......परन्तु सुन्दर रचना.

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  3. सुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति ! लेकिन सत्य यही है कि सब कुछ जानते हुए भी मृत्यु का भय सभी को सताता है ! अच्छी रचना के लिये बधाई !

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  4. तब विश्रान्ति का ,
    वह अनमोल पल आता है ,
    अपार शान्ति छा जाती है ,
    आत्मा स्वतंत्र हो जाती है ,
    फिर मृत्यु से भय कैसा ,
    यह तो एक सच्चाई है |

    सटीक विचार ....सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  6. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आप को बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं

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  7. मृत्यु क्या है?
    जन्म से मृतु तक का
    समय है - 'जीवन यात्रा'.
    परन्तु मृत्यु तक सीमित
    नहीं है - यह जीवन.

    मृत्यु है -
    जीवन का विश्राम स्थल;
    कुछ क्षण रुक कर...,
    भूत को टटोलने और,
    भविष्यत् के गंतव्य को,
    कृतकर्म के मंतव्य को,
    पुनर्जन्म के माध्यम से,
    निर्दिष्ट लक्ष्य संधान का,
    पुनीत द्वार है - यह.

    मृत्यु; विनाश नहीं, सृजन है.
    मृत्यु; अवकाश नहीं, दायित्व है.
    मृत्यु; नवजीवन का द्वार है.
    मृत्यु; अमरत्व का अवसर है.

    मृत्यु; विलाप का नहीं,
    समीक्षा का विन्दु है.
    जिसके आगे अमरत्व का
    लहराता हुआ सिन्धु है.
    लक्ष्य का स्वागत द्वार है और,
    पारलौकिक जीवन का प्रारम्भ विन्दु है.
    मृतु डरने की नहीं, चिंतन की विन्दु है

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