23 अगस्त, 2010

घुँघरू

बंधी किंकिणी कमर पर
पहने पैरों में पैजनिया
जब ठुमक ठुमक चलता
सुनाई देती ध्वनि घुंघरूओं की
थामना चाहती उंगलियां
कहीं चोट न लगाजाए |
चाहती हूं थामूं उंगली उसकी ,
कहीं चोट ना लग जाए |
कारे कजरारे नयनो वाली
है अवगुंठन चहरे पर
चूड़ियों की खनक से
पैरों में सजी पायलों से
देती है झलक अपने आगमन की
पायलें भी ऐसी जो बोलती हैं
मन के भेद खोलती हैं
हैं हमजोली नूपुर की |
मीरा ने घुँघरू बांधे थे
वह कृष्ण प्रिया हो गयी
सुध बुध खो नृत्य करती
थी भक्ति भाव में सराबोर
आती है मधुर ध्वनि घुँघरू की
आज भी मीरा मंदिर से |
है मंदिर प्रांगण में आयोजन
सजधज कर आई बालाएं
हो विभोर नृत्य कर रहीं
उनका पद संचालन
और झंकार घुंघरूओं की
पहुंचती है दूर तक
प्रसन्न होता मन
वह मधुर झंकार सुन |
है पंडाल सजा सजाया
मंच पर पड़ती थाप
नर्तकियों के पैरों की
घुँघरूओं के बजाते ही
सब उसी रंग में रंगते जाते |
है घुंघरुओं की खनक सब मैं
पर हर बार भिन्न लगती है
पैरों के घुँघरू बचपन के
तो कभी हैं अभिसारिका के
कभी नाइका की पदचाप
तो कभी चंचल मोरनी की
थिरकन से लगते हैं |
घुँघरू हैं वही पर
हर बार भाव भिन्न और
बजने का अंदाज भिन्न
एक घुंगरू भी यदि अलग हो जाए
असहाय सा हो जाता है
अपना अस्तित्व
खोजता रहा जाता है |
है घुँघरू आधार नृत्य का
वह उसके बिना अधूरा है ,
बिना घुँघरू की मधुर धुन के ,
जीवन भी सूना सूना है |
आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ...घुंघरू और रिश्तों को सहेजती सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  2. एक घुँघरू भी यदि हो जाए अलग ,
    असहाय सा हो जाता है ,
    अपना अस्तित्व खोजता रह जाता है

    सुर के लिए कड़ियों का जुड़ना भी जरुरी है।
    कोई भी काम आदमी अकेले ही अकेले के लिए नहीं करता।
    जब कड़ियाँ जुड़ती है तब वह सर्व जन हिताय हो जाता है।

    अच्छी कविता के लिए आभार

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  3. है घुँघरू आधार नृत्य का ,
    वह उसके बिना अधूरा है ,
    बिना घुँघरू की मधुर धुन के ,
    जीवन भी सूना सूना है |
    --
    बहुत ही तथ्यपरक रचना है!

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  4. बिना घुँघरू की मधुर धुन के ,
    जीवन भी सूना सूना है .........
    सुन्दर कविता !!

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  5. आपकी रचना ने विभोर कर दिया और मन घुंघरुओं की मधुर ध्वनि में खो गया ! सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें !

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  6. भाई-बहिन के पावन पर्व रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    --
    आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है!
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/255.html

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