22 सितंबर, 2010

मैं गुनगुनाता हूं

मैं गुनगुनाता हूं ,
गीत गाता हूं ,
कभी अपनों के लिए ,
कभी गैरों के लिए ,
जब किसी दिल को छू जाता है ,
एक आह निकलती है ,
सर्द सर्द होंठों से ,
यूँ सुनाई नहीं देती ,
पर खो जाती है नीलाम्बर में ,
घुल मिल जाती है उस में ,
लेखन और गायन मेरी आदत नहीं है ,
है एक गुबार मेरे दिल का ,
ह्रदय के किसी कौने से निकली आवाज ,
कई बार मुझे बहकाती है ,
शब्द खुद ही प्रस्फुटित होते हैं ,
गीतों की माला बनती जाती है ,
आवाज का सानिद्ध्य पा ,
गीत जीवंत हो जाते हैं ,
जाने कितनों के मन छू जाते हैं ,
ना सुर ना ताल ,
फिर भी वह दर्द जो छुपा था ,
बरसों से दिल में ,
कई बार उभर कर आता है ,
ले शब्दों का रूप मुझे छलता है ,
मैं नहीं जानता,
है यह सब क्या ,
ना ही गीतकार बनने की ,
तमन्ना रखता हूं ,
पर मेरे अपने ,
संग्रहित उन्हें कर लेते हैं ,
कई बार पिछले गीतों की ,
याद दिलाते हैं ,
उन्हें सुनना चाहते हैं ,
दर्द ह्रदय का,
और उभर कर आता है ,
कई रचनाओं का,
कलेवर बन जाता है ,
मैं कोई धरोहर गीतों की ,
छोड़ना नहीं चाहता ,
पर आवाज कहीं,
दिल के भीतर से आती है ,
उसे ही शब्दों में पिरोता हूं ,
वही मेरा गीत है ,
वही मेरी प्रेरणा है |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. मैं कोई धरोहर गीतों की ,
    छोड़ना नहीं चाहता ,
    पर आवाज कहीं,
    दिल के भीतर से आती है ,
    उसे ही शब्दों में पिरोता हूं ,
    वही मेरा गीत है ,
    वही मेरी प्रेरणा है
    सच में यही दिल की आवाज तो एक आकार लेकर कृति का रूप धारण कर लेती है..
    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  2. दर्द ह्रदय का,
    और उभर कर आता है ,
    कई रचनाओं का,
    कलेवर बन जाता है ,
    Dard se bhari sundr rachna.

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  3. बहुत बढ़िया रचना ! गीत ऐसे ही अनायास जन्म लेते हैं जो सायास लिखे जाएँ वे गीत निष्प्राण होते हैं ! अति उत्तम !

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  4. आशा दीदी प्रणाम, बहुत ही प्यारी रचना का सृजन किया है आपने....
    आभार.

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