19 अक्टूबर, 2010

है कितना आकर्षण

तुम नहीं जानतीं ,
है कितना आकर्षण,
समझो या ना समझो ,
मैं कुछ कहना चाहता हूं ,
तुम्हें मांगना चाहता हूं ,
हूं बहुत उलझन में ,
क्या करूं ,किससे कहूं ?
दिन तो कट ही जाता है ,
पर रात काटना बहुत कठिन है ,
मैं तुम्ही में खोया रहता हूं ,
सपनों में तुम्हें देख,
नींद भी धोख दे जाती है ,
तुम्हारी कही हर बात ,
बार बार याद आती है ,
है कारण इसका क्या ,
मुझे नहीं मालूम ,
दिन में याद कहां जाती है ,
रात में ही क्यूं आती है ,
मैं नहीं जानता ,
मेरे लिए क्या सोचा तुमने ,
क्या विचार तुम्हारे मन में ?
पर है इतना अवश्य ,
आकर्षण प्रेम नहीं होता ,
उसे पाने के लिए ,
होता आवश्यक,
मध्यस्त का होना ,
अभी तक सोच नहीं पाया ,
आखिर वह होगा कौन ,
जो तुम तक पहुंचाएगा ,
तुम से संबंध जुड़वाएगा,
यदि तुम भी चाहो ,
और तुम्हारी इच्छा हो,
तभी कोई बात होगी ,
मेरी चाहत पूर्ण होगी ,
अनचाहा रिश्ता नहीं चाहता ,
हो कोई बोझ ह्रदय पर ,
मैं ऐसा भी नहीं चाहता ,
हो संबंध ऐसा,
जिसमें सहमत दौनों हों ,
खुशियां ही खुशियां हों ,
तभी सार्थक होता है ,
सफलता की,
प्रथम सीड़ी होता है |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. हो संबंध ऐसा,
    जिसमें सहमत दौनों हों ,
    खुशियां ही खुशियां हों ,
    तभी सार्थक होता है ,
    सफलता की,
    प्रथम सीड़ी होता है |
    bahut sahi lines... well written mam...

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  2. हो संबंध ऐसा,
    जिसमें सहमत दौनों हों ,
    खुशियां ही खुशियां हों ,
    तभी सार्थक होता है ,..

    tabhi saarthakta hai sambandhon ki.

    bahut sundar abhivyakti.

    .

    जवाब देंहटाएं
  3. आपके विचारों से पूर्णत: सहमत ! रचना के माध्यम से एक सार्वभौमिक सत्य को उजागर किया है आपने ! सुन्दर और विचारपूर्ण रचना !

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  4. दिल की कक़्शमकश मे भी एक् आशा की किरण ।
    हो संबंध ऐसा,
    जिसमें सहमत दौनों हों ,
    खुशियां ही खुशियां हों ,
    तभी सार्थक होता है ,
    सफलता की,
    प्रथम सीड़ी होता है |
    बहुत सही बात है आशा जी। शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  5. आशा जी प्रणाम! आप अर्थशास्‍त्र की स्‍टूडेंट होकर हम हिंदी वालों को भी बहुत कुछ सीखने को प्रेरित कर जा रही हैं। आपकी रचना तो इतनी अच्‍छी बन पड़ी है कि आपके विषय से मेल ही नहीं खाती। कही बाद में हिंदी में भी मास्‍टर डिग्री नहीं ली थी न आपने। खैर, जो भी हो बेहतरीन लिखा है आपने।
    आपकी रचना के बारे में दो शब्‍द- ... जब भावना सच्‍ची हो तो प्रकट करने में डर किस बात का। जो भी कहना है, बेधड़क कह डालिए। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि दिल के तार एक-दूसरे से इस कदर जुड़े होते हैं कि हमें बहुत अधिक कोशिश नहीं करनी पड़ी। यदि हम मन से, आत्‍मा से किसी के प्रति चाहत रखते हैं तो उसे इसका आभास हमारे कहे बगैर ही हो जाता है। इजहार तो बस पुष्टि के लिए है, पर है जरूरी। कह दीजिए कोई आपको सुनने का इंतजार कर रहा है। और फिर आपके बारे में क्‍या कहना। आपका तो नाम ही है- आशा। आशा यानी उम्‍मीद, वह भी ऐसी जो कभी खत्‍म न हो। इतनी अच्‍छी रचना के लिए आपको बधाई।

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