29 जनवरी, 2011

विडम्बना

मैं रवि रहता व्यस्त पर हित में ,
कुछ तो नत मस्तक होते
करते प्रणाम मुझको
पर फिर भी लगती कहीं कमी
यही विचार आता मन में
वह प्यार मुझे नहीं मिलता
जो वह पा जाता है
है अस्तित्व उसका जब कि
मेरे ही प्रकाश से |
होता सुशोभित वह
चंद्रमौलि के मस्तक पर
सिर रहता गर्व से
उन्नत उसका |
जब भी चर्चा में आता
सौंदर्य किसी का,
उससे ही
तुलना की जाती |
त्यौहारों पर तो अक्सर
रहता है वह केंद्र बिंदु
कई व्रत खोले जाते हैं
उसके ही दर्शन कर |
इने गिने ही होते हैं
जो करते प्रणाम मुझको
वह भी किसी कारण वश
यूँ कोई नहीं फटकता
आस पास मेरे
जाड़ों के मौसम में
उष्मा से मेरी
वे राहत तो पाते हैं
पर वह महत्व नहीं देते
जो देते हैं उसे |
वह अपनी कलाओं से
करता मंत्र मुग्ध सबको
कृष्ण गोपिकाओं की तरह
तारिकाएं रहती निकट उसके
लगता रास रचा रही हैं
और उसे रिझा रही हैं |
इतने बड़े संसार में
मैं हूँ कितना अकेला
फिर लगने लगता है
महत्त्व मिले या ना मिले
क्या होता है
मेरा जन्म ही हुआ है
पर हित के लिए |

आशा

11 टिप्‍पणियां:

  1. samast sansar ko bhasmsat kar dene ki kshamta rakhane wale soory ke man ki yah jalan bahut pasand aayi. bahut sundar manavikaran kiya hai aapne ! badhai evam shubhkamnayen !

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  2. मनवतावादी दृष्टिकोण लिए यह रचना प्रेरणास्पद हैं बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    फ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (चौथा भाग)

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  3. इतने बड़े संसार में
    मैं हूँ कितना अकेला
    फिर लगने लगता है
    महत्त्व मिले या ना मिले
    क्या होता है
    मेरा जन्म ही हुआ है
    पर हित के लिए |

    बहुत ही सुंदर तरीके से आपने सूर्य के मन की बातें लिखी हैं -
    आपकी ये कविता बहुत पसंद आई -
    शुभकामनाएं

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  4. आशा जी !!!बहुत ही सुन्दर भाव सूर्य के समान ही महान ब्यक्तियों का जीवन होता है संसार के हित में समर्पित ....आपने ओर पराये के बोध से रहित...सुन्दर शब्दों एवं भावों के संयोजन के लिए कोटि कोटि
    अभिनन्दन !!!!

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  5. इतने बड़े संसार में
    मैं हूँ कितना अकेला
    फिर लगने लगता है
    महत्त्व मिले या ना मिले
    क्या होता है
    मेरा जन्म ही हुआ है
    पर हित के लिए |

    भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  6. सारगर्भित अतिसुन्दर रचना...वाह...

    भावों को संतुलित प्रभावशाली अभिव्यक्ति दी है आपने...

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  7. रवि की तरह अंतर्मन की भावाभिव्यक्ति करती रचना.

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  8. नमस्कार........ आपकी कविता मन को छु गयी......
    मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......

    http://harish-joshi.blogspot.com/

    आभार.

    जवाब देंहटाएं
  9. मनवतावादी दृष्टिकोण लिए यह रचना प्रेरणास्पद हैं

    जवाब देंहटाएं
  10. इतने बड़े संसार में
    मैं हूँ कितना अकेला
    फिर लगने लगता है
    महत्त्व मिले या ना मिले
    क्या होता है
    मेरा जन्म ही हुआ है
    पर हित के लिए |
    Bhavon ki sundar abhivyakti.........Prabhavshali rachna..

    जवाब देंहटाएं

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