30 जनवरी, 2011

स्वार्थी दुनिया

होता नहीं विश्वास
कभी विष कन्याएं भी होती थीं
होता था इतना आकर्षण
कोई भी बँध जाता था
मोह पाश में उनके |
सदियों से ही सुंदरता का
उसके पूर्ण उपयोग का अवसर
खोना न चाहा किसी ने |
जब भी कोई स्वार्थ होता
उपयोग विष कन्या का होता |
बचपन से ही रखा जाता
सब की नजरों से दूर
उस अपूर्व सुन्दरी को |
नमक से दूरी रख
पालन पोषण होता उसका
यदि किसी की दृष्टि भी
उस पर भूले से पड़ जाती
हो जाता भूलना कठिन |
कई ऱाज जानने के लिए
बदला लेने के लिए
पूर्ण योगदान होता था उसका |
पर थी नितांत अकेली वह
एक ही बात
मन में घुमड़ती
लगती सुंदरता अभिशाप
जब सभी उससे दूरी रखते
निकटता से उसकी डरते |
उसकी सुंदरता
उसके बाहुपाश का बंधन
कारण बनता
मृत्यु के कगार तक पहुँचने का
हर बार विचार कौंधता मन में
क्या होती सुंदरता अभिशाप |
है कितनी स्वार्थी दुनिया
निज हित के लिए
कितना गिर सकती है
कुछ भी कर सकती है |

आशा





13 टिप्‍पणियां:

  1. एक अनोखे विषय पर अनूठी कविता ! विषकन्याओं का प्रयोग सदैव दुश्मन के भेद जानने के लिये या उसकी ह्त्या करने के लिये किया जाता था ! एतिहासिक ग्रंथों में इनका विशेष उल्लेख रहता है ! बढ़िया और ज्ञानवर्धक रचना ! बधाई एवं आभार !

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  2. कविता में व्यक्त आपके विचार सोचने को मजबूर करते हैं .

    सादर
    ------
    बापू! फिर से आ जाओ

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  3. मृत्यु के कगार तक पहुंचने का
    हर बार विचार कौंधता मन में
    क्या होती सुंदरता अभिशाप |
    है कितनी स्वार्थी दुनिया
    निज हित के लिए
    कितना गिर सकती है
    कुछ भी कर सकती है |
    --
    बहुत ही सशक्त रचना लिखी है आपने तो!

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  4. एक अछूते उदाहरण का प्रयोग करके आपने युगों से चली आ रही समस्य को सही शब्द दिया है....

    सादर

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  5. आदरणीय आशा जी ,
    विषकन्या का जीवन कितना अभिशप्त था ,खुद उसके लिये भी ,आपने
    बहुत प्रभावी रूप से दिखा दिया । आभार ।

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  6. बहुत अच्छी लगी रचना। आजकल तो विश के बिना भी कुछ विश कन्यायें वही काम कर रही हैं। बेशक ये विश पुरुष दुआरा या समाज दुआरा ही दिया जाता है लेकिन इल्जाम हमेशा औरत पर ही होता है। आभार।

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  7. बचपन में विषकन्याओ के बारे माँ-दादी की कहानियों मे सुनते थे । विषकन्या के बारे मे इतनी गहराई से पहली बार पढ़ने को मिला । धन्यवाद ।

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  8. है कितनी स्वार्थी दुनिया
    निज हित के लिए
    कितना गिर सकती है
    कुछ भी कर सकती है |

    विष कन्या पर पहली बार कोई रचना पढ़ी..सही कहा है स्वार्थ के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  9. अछूता विषय... सार्थक दृष्टिकोण...
    आभार... सादर ....

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  10. विष कन्या के दर्द कों बयां करती उम्दा रचना।

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  11. है कितनी स्वार्थी दुनिया
    निज हित के लिए
    कितना गिर सकती है
    कुछ भी कर सकती है
    bahut achchi lagi.

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  12. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    ........सार्थक दृष्टिकोण बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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