चाँद ने चांदनी लुटाई
शरद पूनम की रात में
सुहावनी मनभावनी
फैली शीतलता धरनी पर
कवि हृदय विछोह उसका
सह नहीं पाते
दूर उससे रह नहीं
पाते
हैं वे हृदयहीन
जो इसे अनुभव नहीं
करते
इसमें उठते ज्वार को
महसूस नहीं करते
कई बार इसकी छुअन
इसका आकर्षण
ले जाती बीते दिनों में
वे पल जीवंत हो
उठते
आज भी यादों में
है याद मुझे वह रात
एक बार गुजारी थी
शरद पूर्णिमा पर ताज में
अनोखा सौंदर्य लिए वह
जगमगा रहा था रात्रि में
आयतें जो उकेरी गईं
आयतें जो उकेरी गईं
चमक उनकी हुई दुगनी
उस हसीन चांदनी में
आज भी वह दृश्य
नजर आता है
बंद पलकों के होते ही
बीते पल में ले जाता
है
उस शरद पूर्णिमा की
याद दिलाता है |
आशा
सैकड़ों पूनम बिखेरी चांदनी,
जवाब देंहटाएंख़ास थी पर शरद वाली, ठीक दीदी ।
वह सुहावन मनभावन शीतलता
हृदय में अमरत्व पाली, ठीक दीदी ।।
उम्दा काव्य चित्र, ऐसे ही पूर्णिमा को एक महाकाव्य रचा गया रामगढ में मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आशा जी....
जवाब देंहटाएंमेरी भी तमन्ना है कि ताज देखूं चांदनी रात में.....
पहले तो आतंकवाद के चलते रात में जाने पर रोक लगा दी थी.......
सादर.
अनु
bahut sunder.
जवाब देंहटाएंkai drishy jo man ki diwaro se kabhi mitTe nahi.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात...आपका दिन मंगलमय हो।
आपके ब्लॉग की चर्चा। यहाँ है, कृपया अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं
जवाब देंहटाएंउन मधुर पलों को हम लोगों ने साथ-साथ जिया था ! आपकी सुन्दर रचना ने मुझे भी वह शरद पूर्णिमा की स्निग्ध ज्योत्सना में पगी ताज की उस सुन्दर छवि की याद दिला दी ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंशीतलता लिए बहुत खुबसूरत भाव....
जवाब देंहटाएंपूनम की रात की तरह शीतलता लिये खूबशूरत भाव पुर्ण रचना,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंताज महल देखने का अपना भी मन हैं .....खूबसूरत रचना
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