14 जुलाई, 2012

बढ़ते चरण महगाई के

सुरसा राक्षसी

बढ़ते चरण मंहगाई के
जीना दुश्वार कर रहे
आज है यह हाल जब
कल की खबर किसे रहे
यादें सताती है
कल के खुशनुमा दिनों की
मन पर अंकुश तब भी था
पर हर वस्तु लेना संभव था |
बात आज की क्या करें
ना तो  नियंत्रण मन पर
ना ही चिंता भविष्य की
‘बस इस पल में जी लें ‘
है अवधारणा आज की
 है हाल बुरा मंहगाई का
अंत नजर ना आता इसका
सुरसा का मुँह भी लगता छोटा
इसका कोई हल ना होता |

आशा









11 टिप्‍पणियां:

  1. है हाल बुरा मंहगाई का
    अंत नजर ना आता इसका
    सुरसा का मुँह भी लगता छोटा
    इसका कोई हल ना होता |
    बहुत मुश्किल कर दिया है इस महंगाई ने जीना...बढ़िया प्रस्तुति के लिए आभार आशाजी

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  2. बहूत बढीया रचना...
    अब क्या करे इस महगाई का ..
    :-)

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  3. आप चिदम्बरम साहब को फॉलो किया कीजिए। आपने सुना नहीं उनका सवालः आप बच्चों को बीस रूपए का कोन दे सकती हैं,तो चावल या गेहूं की दर में प्रतिकिलो एक रूपए का इजाफ़ा क्यों बर्दाश्त नहीं कर सकतीं?

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  4. कही अजीरण हो रहा, कही सताए भूख
    चिंतन करना चाहिए, कहाँ हो रही चूक,,,,,,

    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

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  5. सत्य वचन ! यथार्थ का सही चित्रण करती सशक्त रचना !

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  6. बहुत बढ़िया..........
    सच बयां करती सशक्त रचना.
    सादर
    अनु

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  7. बात आज की क्या करें
    ना तो नियंत्रण मन पर
    ना ही चिंता भविष्य की
    ‘बस इस पल में जी लें ‘
    है अवधारणा आज की

    ...सही आकलन

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  8. है हाल बुरा मंहगाई का
    अंत नजर ना आता इसका......sab pareshan hain.....

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  9. सार्थक सटीक रचना ..यथार्थ का सही चित्रण

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  10. चित्र के मुताबिक सार्थक कविता मंहगाई पर

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