बढ़ते चरण मंहगाई के
जीना दुश्वार कर रहे
आज है यह हाल जब
कल की खबर किसे रहे
यादें
सताती है
कल
के खुशनुमा दिनों की
मन
पर अंकुश तब भी था
पर
हर वस्तु लेना संभव था |
बात आज की क्या करें
ना तो नियंत्रण मन पर
ना ही चिंता भविष्य की
‘बस इस पल में जी लें ‘
है अवधारणा आज की
है हाल बुरा मंहगाई का
अंत नजर ना आता इसका
सुरसा का मुँह भी
लगता छोटा
इसका कोई हल ना होता
|
आशा
है हाल बुरा मंहगाई का
जवाब देंहटाएंअंत नजर ना आता इसका
सुरसा का मुँह भी लगता छोटा
इसका कोई हल ना होता |
बहुत मुश्किल कर दिया है इस महंगाई ने जीना...बढ़िया प्रस्तुति के लिए आभार आशाजी
बहूत बढीया रचना...
जवाब देंहटाएंअब क्या करे इस महगाई का ..
:-)
आप चिदम्बरम साहब को फॉलो किया कीजिए। आपने सुना नहीं उनका सवालः आप बच्चों को बीस रूपए का कोन दे सकती हैं,तो चावल या गेहूं की दर में प्रतिकिलो एक रूपए का इजाफ़ा क्यों बर्दाश्त नहीं कर सकतीं?
जवाब देंहटाएंकही अजीरण हो रहा, कही सताए भूख
जवाब देंहटाएंचिंतन करना चाहिए, कहाँ हो रही चूक,,,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
सत्य वचन ! यथार्थ का सही चित्रण करती सशक्त रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..........
जवाब देंहटाएंसच बयां करती सशक्त रचना.
सादर
अनु
सटीक !
जवाब देंहटाएंबात आज की क्या करें
जवाब देंहटाएंना तो नियंत्रण मन पर
ना ही चिंता भविष्य की
‘बस इस पल में जी लें ‘
है अवधारणा आज की
...सही आकलन
है हाल बुरा मंहगाई का
जवाब देंहटाएंअंत नजर ना आता इसका......sab pareshan hain.....
सार्थक सटीक रचना ..यथार्थ का सही चित्रण
जवाब देंहटाएंचित्र के मुताबिक सार्थक कविता मंहगाई पर
जवाब देंहटाएं