28 अक्टूबर, 2012

रोज एक धमाका


पेपर  में कुछ नया नहीं
 है मिडीया भी बेखबर नहीं
नित नए घोटाले
उनपर बहस और आक्षेप
केवल छींटाकशी और
आपस में दुर्भाव
कोइ नहीं बचा इससे
यदि थोड़ी भी शर्म बची होती
इतने घोटाले न होते
उंसके  खुलासे न होते
मुंह पर स्याही न पुतती
कोइ तो बचा होता
बेदाग़ छवि जिसकी होती
श्वेत वस्त्रों पर दाग
गुनाहों के ,न होते
रोज एक धमाका होता है
किसी घोटाले का खुलासा होता है
टी .वी .पर बहस या चर्चा
लगती गली के झगडों सी
शोर में गुम हो जाता है
क्या मुद्दा था बहस का
कई बार शर्म आती यही सोच कर
ये कैसे पढ़े लिखे हैं
सामान्य शिष्टाचार से दूर
अपनी बात कहने का
 और दूसरों को सुनने का 
 धैर्य भी नहीं रखते
शोर इतना बढ़ जाता कि
आम दर्शक ठगा सा रह जाता
सोचने को है बाध्य
क्या लाभ ऐसी बहस का
जिसका कोइ  ओर ना छोर
यूँ ही समय गवाया
कुछ भी समझ न आया
सर दर्द की गोली का
 खर्चा और बढ़ाया |
आशा





 

13 टिप्‍पणियां:

  1. आज के यथार्थ की बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..

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  2. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 29-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1047 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  3. "क्या लाभ ऐसी बहस का जिसका कोइ ओर ना छोर "
    बिलकुल यही होता है आजकल... बेमतलब की बहस जो बिना किसी हल के समाप्त हो जाती है... सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार

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  4. किसी के करे-धरे कुछ होता नहीं .बस, बहस और कागज़ी घोड़ेों की दौड़!

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  5. सोचने को है बाध्य
    क्या लाभ ऐसी बहस का
    जिसका कोइ ओर ना छोर
    यूँ ही समय गवाया
    कुछ भी समझ न आया
    सर दर्द की गोली का
    खर्चा और बढ़ाया |
    आशा

    भ्रष्टाचार करो ,तरक्की पाओ ,क़ानून से विदेश पद मंत्री पाओ .

    बिलकुल मत शरमाओ ,जो मिल जाए खाओ ,
    सर्व भक्षी कहलाओ .

    बधाई इस परवेश प्रधान रचना की चुभन के लिए .

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  6. सोचने को है बाध्य
    क्या लाभ ऐसी बहस का
    जिसका कोइ ओर ना छोर
    यूँ ही समय गवाया
    कुछ भी समझ न आया
    सर दर्द की गोली का
    खर्चा और बढ़ाया |
    आशा

    भ्रष्टाचार करो ,तरक्की पाओ ,क़ानून से विदेश पद मंत्री पाओ .

    बिलकुल मत शरमाओ ,जो मिल जाए खाओ ,
    सर्व भक्षी कहलाओ .



    बधाई इस परिवेश प्रधान रचना की चुभन के लिए .

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  7. क्या लाभ ऐसी बहस का
    जिसका कोइ ओर ना छोर
    यूँ ही समय गवाया
    कुछ भी समझ न आया
    सर दर्द की गोली का
    खर्चा और बढ़ाया |
    आशा
    बिलकुल सही कहा।

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  8. सही कहा है आपने ...आज कल ये ही सब तो पढ़ने को मिलता है रोज़ रोज़

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  9. बड़ी बेबाकी से यथार्थ का चित्रण किया है ! टी वी पर जो बहसें आती है वे वाकई में सर दुखाने वाली ही होती हैं ! ना तो किसी भी प्रतिभागी का मत स्पष्ट हो पाता है ना ही चर्चा किसी निष्कर्ष पर पहुँचती है !

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