10 अगस्त, 2013

क्या से कया हो गयी



घुली मिली जल में चीनी सी
सिमटी अपने घर में
गमले की तुलसी सी रही
शोभा घर आँगन की |
ना कभी पीछे मुड़ देखा
ना ही भविष्य की चिंता की
व्यस्तता का बाना ओढ़े
मशीन बन कर रह गयी |
हर पल औरों के लिए जिया
 खुद को समय न दे पाई
अस्तित्व उसका कब कहाँ  खो गया
अहसास तक ना हुआ |
सोई रही   गहरी निंद्रा में
वही  अचानक भ्रम से जागी
जो ढूँढ़ती थी वजूद अपना
केवल चुटकी भर सिन्दूर में |
खाई थीं कसमें दौनों ने
सातों वचन निभाने की
घर में कदम रखने के पहले
बंध गए प्यार के बंधन में |
पर वह भूला सारे वादे
कच्चा धागा कसमों का टूटा
 प्यार का बंधन न रहा
बोझ बन कर रह गया |
अब वह खोज रही खुदको
सोच रही वह
क्या से क्या हो गयी
क्यूं ठगी गयी ?क्या पाया ?
हरियाली सपना हुई
  अस्तित्व  खोजाना व्यर्थ लगा  
रह गयी अब बूढ़े  वृक्ष की
सूखी डाली सी |
आशा

21 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुंदर ! एक सम्पूर्ण जीवन यात्रा को बड़ी सशक्त अभिव्यक्ति दी है ! बढ़िया रचना !

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    1. कविता अच्छी लगी जान कर बहुत अच्छा लगा |
      आशा

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  2. कल 11/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  3. जीवन में क्या मिला ?क्या नहीं मिला? उसका लेख जोखा थोड़े से शब्दों में -बहुत सुन्दर
    latest post नेताजी सुनिए !!!
    latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!

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    1. मैं आपकी सारी रचनाएं पढ़ती हूँ |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
      आशा

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-08-2013) के चर्चा मंच 1334 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  5. उत्तर
    1. टिप्पणी से लेखन को प्रोत्साहन मिलता है |
      आशा

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  6. उत्तर
    1. काफी समय बाद आज आपको ब्लॉग पर देखा |टिप्पणी हेतु धन्यवाद

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  7. अक्सर ऐसा ही होता है । सच बात ।

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  8. बहुत ही संवेदना पूर्ण रचना ..एक औरत की जीवन यात्रा को बखूबी बयां करती हुई

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  9. अस्तित्व खोजाना व्यर्थ लगा
    रह गयी अब बूढ़े वृक्ष की
    सूखी डाली सी |..... मर्म को उद्द्वेलित करती सुन्दर कविता !

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    1. आपको अपने ब्लॉग पर देख बहुत अच्छा लगा | टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
      आशा

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  10. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आ हौसलाअफजाई के लिए धन्यवाद |
      आशा

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