30 मई, 2014

क्षणिकाएं

(१)

सदा खिलता कमल पंक में
रहता दूर उसी पंक से

अपना स्वत्व बनाए रखता 
 शुचिता से भरपूर



निगाहेकरम की जो ख्वाहिश थी उन की
राख के ढेर में दब कर रह गयी
ना ही कोई अहसास ना ही कोई हलचल
पत्थर की मूरत हो कर  रह गयी |


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