09 सितंबर, 2014

त्रासदी










तिनका तिनका जोड़
बनाया था  आशियाँ
सारी तमन्नाओं का
 मूर्त रूप गरीब खाना |
पलक झपकते ही
भयावह हादसा हुआ
सैलाव ऐसा था की
 जल मग्न आशियाँ  हुआ |
सारी यादें बह गईं
 बचपन से आज तक 
दो गज जमीन भी न बची
 सर छिपाने को वहां  |
जल ही जल यहाँ वहां
हूँ कहाँ किस हाल में
यह भी न समझ पाता
कुछ भी न नजर आता |
   रह गया है गम    
  घर से ,अपनों से,
सब  से बिछुड़ने का
समस्याओं से जूझने का |
 दूर सभी स्वप्नों से
स्वप्नों की जन्नत से
होगा वर्तमान इतना भयावह 
 कभी सोचा न था |
लगता नहीं इस जीवन में
फिर से बहार आएगी
सारे दुःख भूल कर
जीवन गाड़ी चल पाएगी |
आशा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: