26 दिसंबर, 2014

मैं अकेला


     मैं अकेला
खो गया यूं ही नहीं
गुमनामी के अँधेरे में
अपने आसपास ओढ़ा
आवरण भी गहन नहीं
फिर भी अन्धकार से घिरा
मार्ग से बिचलित हुआ
अहसास अकेलेपन का
इस तरह हावी हुआ
जीवन भार सा हुआ
अब रह ही क्या गया
नई राह खोजने को
उस पर आगे बढ़ने को
अब खुद से ही बेजार हूँ
करनी पर पशेमान हूँ
मैं ही पकड़ नहीं पाया
समय से पीछे रह गया
यदि पहले से सचेत होता
गुमनामी नहीं झेलता
हमजोली मेरा होता
हर कदम पर साथ देता
यूं ही एकल ना रहता |
आशा

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