20 अप्रैल, 2015

मिलाएं हाथ

 
नभ जल थल एक साथ 
मिलाएं  हाथ
उर्मियाँ सागर की शोभा 
प्रिय  हैं उसे
हरियाली धरा की साथी 
नयनाभिराम लगे
उड़ते परिंदे व्योम में
स्पंदित करें 
वाणी मुखर उनकी 
सुरांजलि दे  
सृष्टि का साम्राज्य अधूरा
बिना उनके
मन बंजारा चाहता कुछ पल 
ठहरने को
प्यार के पल जीने की चाह उसे
बाधित करे

अगर रुका बंजारा न रहेगा
स्थिर तो होगा |

आशा







कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: