24 अप्रैल, 2015

उम्र की ढलान पर


तिल तिल क्षय होता जीवन
घटती जातीं  साँसें
नयन व्याकुल रहते फिर भी
उसकी आहट पाने को
अनजाने में हुई भूल से  
ठेस उसे पहुंची गहरी
राह अवरुद्ध  ना कर पाईं
मिन्नतें अनगिनत भी
वह रुका नहीं चला  गया
खोज खोज के हारी
जाने कहाँ खो गया
दुनिया की चकाचौंध में
हुआ दृष्टि  से ओझिल
पर दिल से दूर नहीं
हर क्षण याद उसकी
बेकल किये रहती है
कैसे मन को समझाऊँ
समझ नहीं पाती
हर आहट दरवाजे की
उसी की नजर आती  
वह ना आया आज तक
पलट कर भी न देखा
घाव नासूर होने लगे
उम्र की ढलान पर |
आशा


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