20 सितंबर, 2015

कल्पना


हर अदा तेरी
अधिक समीप लाती
तू ही तू नज़र आती
स्वप्नों में सताती |
जुम्बिश अलकों की
कशिश खंजन नयनों की
छिपा लूं अपने मन में
सहेजूँ ये पल दिल में
सुर्ख लाल अधर तेरे
मुस्कुराते ध्यान खीचते
मीठे बैन उनसे झरते
मन में राह बनाते 
अंतस में पैंठ जाते 
मंथर गति से तेरा चलना
आँचल  का हवा में उड़ना
उसे सम्हालने की कोशिश में
चूड़ियों का खनकना
सुनने को मन करता
चूड़ियों की खनक हाथों में
पायल सजती पैरों में 
हिना की महक
महावरी रंग की झलक
तुझे और समीप लाती
दिल से दिल की राह दीखती
तेरी जुल्फ़ों के साए में
तनिक ठहर जाऊं अगर
तुझसे कुछ न चाहूँ
तेरा हो कर रह जाऊं
सुबह शाम तुझसे हो
रात सजे  तेरे स्वप्नों से
है मेरे लिए तू क्या
यह कैसे तुझे बताऊँ |
आशा

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