आजाद कलम
उन्नत विचार
मन में लिए विश्वास
पैर धरातल पर पड़े
जीवन में आया निखार
भाव मन के स्पष्ट हुए
छलकपट से दूर हुए
स्वतंत्रता के पुरोधा
बन्धनों से मुक्त हुए
सत्य सत्य ही होता है
बदल नहीं सकता
तथ्य परख लेखन से
फिर परहेज क्यूं ?
परिणाम चाहे जो भी हो
अंजाम से भय क्यूं
झूट के पांव नहीं होते
फिर उस पर आश्रित क्यूं ?
जब सत्य उजागर होता है
मन का कलुष धोता है
फिर जो भी लिखा जाता है
सदियों तक उसे
याद किया जाता है
लेखन किसी दबाव में
जिसने भी किया
कलम बेच डाली
चंद सिक्कों के लिए
कुछ भी हाथ नहीं आया
आत्मग्लानि केसिवाय
अशांति के शिकंजे में
खुद को फंसा पाया |
आशा
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