11 फ़रवरी, 2016

लम्बी बीमारी के बाद

|


संवेदना विहीन
निष्ठुरता के पुरोधा 
क्या है सोच जानना कठिन 
अंतस की हल चल का
यदि कभी कुछ सहा होता 
कष्ट का अनुभव किया होता 
तभी अनुभव होता
कष्ट किसे कहा जाए
यदि संवेदना के दो बोल भी
भूले से निकले होते
बंजर मन के कौने में
कई कमल खिल जाते
व्यय कितना भी किया जाए
पर मृदु भाषण से दूरी हो
नौकरों की भीड़ लगी हो
 सब भार नजर आते
अपनापन कहीं गुम हो जाता
  आडम्बर सा लगता
एक शब्द विष से बुझा
गहराई तक छू जाता
तन मन से की गई सेवा
किसी पर कर्ज नहीं होती
वे लम्हे याद सदा रहते
गैरों में व अपनों में
अंतर स्पष्ट करते
लम्बी रोगों की दुकान
उबाऊ होती जाती
एक कहावत याद आती
काम सब को होता प्यारा
बिना काम  वह होता  नाकारा
पृथ्वी पर बोझ नजर आता
जीवन से मुक्ति चाहता |
आशा













कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: