29 सितंबर, 2018

मतलबी

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आज की दुनिया में
मतलबियों की दूकान लगी है
हैं इतने मतलबी कि
 मतलब निकल गया तो
पहचानते नहीं |

बहुत से तो एसे है कि
 उनका रुख समझना नामुमकिन
ज्यादा ही सयाने हैं
 बनते बहुत चतुर बहुत ही  |
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23 घंटे · 
घरमेंसेवा कभी न की

    घर में सेवा कभी न की
    अब ढोते हो दूसरों को
    कंधे पर कावड़ टांग कर
    यह कहाँ का है न्याय|

    घर से ही आरम्भ करो
    परमार्थकी प्रक्रिया
    तभी सफल हो पाएगी
    जीवन की अभिलाषा |

    लगा दाव पर सम्मान
    मन को झझकोर रहा है
    दुविधा है चुनने की
    स्वहित या पर हित की|

    सोच समझ पर है भारी
    क्या करे अवला बेचारी
    इस पार कुआ है
    तो उस पार है खाई |



    आशा

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