10 अक्टूबर, 2018

उलझन







ज़िन्दगी की तंग गलियों में
पग धरते ही उलझने ही उलझने
जब तब शूल सी चुभतीं हैं
कर देती हैं लहूूलुुहान पैरों को
छलनी तन मन को
एक समस्या हल न होती
दूसरी मुँँह फाड़ हो जाती उपस्थित
धीरे धीरे आदत हो जाती
उलझनों के साथ जीने की
बीच में गत्यावरोध अवश्य
सहन करने होते
कभी मन असंतुष्ट होता
ऐसी क्या जिन्दगी
कभी प्रसन्न न हो पाते
पर हिम्मत नहीं हारते
समस्याओं का 
कभी तो अंत होगा
रोज़-रोज़ की उलझनों से
छुटकारा मिलेगा |

आशा

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