26 फ़रवरी, 2019

हर हाल में जीना है









हर हाल में जीना है
चाहे कैसा भी जीवन हो
मन को संयत रखना है
रोने धोने से लाभ क्या |
यदि किसी कठिनाई
 से बचना हो
बड़ी बीमारी से दूरी बना कर
नियमित जीवन जीना  है |
 छोटी आपदाओं से क्या  डरना 
यूँ ही  सहन हो जाती है
यही तो जीवन की
है सच्चाई |
जिसने भय पाला मन में
उसने ही जंग हारी जीवन की  
अपना बोझ खुद को ही ढोना है
यही परम सत्य की सीमा है|
कभी किसी ने जीना न सिखाया
समय  के साथ  बढ़ना न सिखाया
 अब तो  हम पिछड़ गए
 आज की दौड़ में|
मान लिया है यही नियति  हमारी
जीत कर भी हार गए हैं
 अपना प्रारब्ध जान गए हैं
अब मलाल नहीं होता
 ऐसी जिन्दगी जीने में |
आशा

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-02-2019) को "बैरी के घर में किया सेनाओं ने वार" (चर्चा अंक-3260) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सर |

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  2. सुप्रभात
    मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद अनिता जी |
    |

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  3. सार्थक चिंतन ! लेकिन नकारात्मकता का स्वर क्यों है इसमें ! जिस भी हाल में हैं जीना भरपूर है !

    जवाब देंहटाएं

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