हर हाल में जीना है
चाहे कैसा भी जीवन हो
मन को संयत रखना है
रोने धोने से लाभ क्या |
रोने धोने से लाभ क्या |
यदि किसी कठिनाई
से बचना हो
से बचना हो
बड़ी बीमारी से दूरी बना कर
नियमित जीवन जीना है |
छोटी आपदाओं से क्या डरना
यूँ ही सहन हो जाती है
यूँ ही सहन हो जाती है
यही तो जीवन की
है सच्चाई |
है सच्चाई |
जिसने भय पाला मन में
उसने ही जंग हारी जीवन की
अपना बोझ खुद को ही ढोना है
अपना बोझ खुद को ही ढोना है
यही परम सत्य की सीमा है|
कभी किसी ने जीना न सिखाया
समय के साथ बढ़ना न सिखाया
अब तो हम पिछड़ गए
आज की दौड़ में|
मान लिया है यही नियति हमारी
आज की दौड़ में|
मान लिया है यही नियति हमारी
जीत कर भी हार गए हैं
अपना प्रारब्ध जान गए हैं
अब मलाल नहीं होता
ऐसी जिन्दगी जीने में |
आशा
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-02-2019) को "बैरी के घर में किया सेनाओं ने वार" (चर्चा अंक-3260) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सर |
बहुत अच्छी रचना आदरणीया
जवाब देंहटाएंसादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद अनिता जी |
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सार्थक चिंतन ! लेकिन नकारात्मकता का स्वर क्यों है इसमें ! जिस भी हाल में हैं जीना भरपूर है !
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