07 मार्च, 2019

गरीबी एक अभिशाप











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है गरीबी एक अभिशाप
जब से जन्म लिया
यही अभिशाप सहन किया
मूलभूत आवश्यकताओं के लिए
भूख शांत करने के लिए
पैसों का जुगाड़ करने के लिए
मां कितनी जद्दोजहद करती थी
सुबह से शाम तक
यहाँ वहां भटकती थी
खुद भूखी  रह कर
 बच्चों का पेट भरती थी
कभी कभी दिन भर
 एक रोटी भी नसीब न होती थी
कडा दिल कर
बच्ची को  गोदी में ले कर  
बाहर काम करने निकली
पहले तो दुत्कार मिली
यह काम तुम्हारे बस का नहीं
अभी आराम करो
काम बहुत से मिल जाएंगे
पर बड़ी  मिन्नतों के बाद 
काम मिल पाया
सुबह से शाम तक हाथ
काम करते नहीं थकते
पर गरीबी ने मुंह फाड़ा
कम न हुई बढ़ती गई
कहावत सही निकली
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया
पैसों की आवक बढ़ी
अब बुद्धि का हुआ ह्रास
बाहरी दिखावे नें  हाथ बढाया
कर के उधारी
की आवश्यकताएं पूरी
वह भी उधार चंद हुई
फिर आए दिन की उधारी रंग लाई
मांगने वाले घर तक आ पहुंचे
भरे समाज में इज्जत नीलाम हुई
झूट के चर्चे सरेआम हुए
सारा सुकून खोगया
क्या ही अच्छा होता
यदि झूट का दामन न  थामा होता
कठिन समय तो गुजर जाता
पर शर्मसार तो न होना पड़ता |
आशा

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-03-2019) को "नारी दुर्गा रूप" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सुप्रभात
      मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सर |

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नकलीपने का खेल : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  3. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ११ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. बहुत खूब ,मार्मिक और यथार्थ ,सादर नमस्कार आप को

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  6. कामिनी जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |

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