एक दूसरे का करें अभिनन्दन
महिलाएं ही करें स्वागत
आगत महिलाओं का
आओ सम्मान दिवस मनाएं
खुद ही अपना गुणगान करें
रोज रोज होते आयोजन
यह दिवस या उस दिन मनाने के
याद नहीं रहते अब तो
किसका दिवस मनाया जाए
भाषण भक्षण का आयोजन करने का
है आज की विशेषता |
जो महिला आए दिन होती रहती प्रताड़ित
बड़ी बड़ी बातें करतीं है
सज बज कर मंच पर आ कर
अन्दर कितानी धुटन भरी है
आनन् पर नजर नहीं आने देतीं
सच्चाई तो यह है वे हो जाती हैं
मूक
मुंह पर ताला लग जाता है
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है
क्या लाभ बहस में फंसने का
जहां थे वहीं रहना है
कोई परिवर्तन नहीं हुआ है
ना ही समाज में ना लोगों की सोच में |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-03-2019) को "जूता चलता देखकर, जनसेवक लाचार" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सर |
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |
अनुपम
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद सदा जी |
वाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक प्रभावी रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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