11 मार्च, 2019

आँखें

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तेरी निगाहें हैं झील सी  गहरी
                                                             गहराई को  नापा नहीं जा सकता
                                                            प्रीत से लवरेज हैं वे
                                                         नजर अंदाज नहीं कर सकता
                                                        जरासी बात पर छलक जाती है
आंसू हैं अनमोल मोती से
उन को तोला नहीं जा सकता
है अजब सी कशिश उनमें
वही है विशेषता उन दौनों की
भोलापन उनसे छलकता
ना ही कोई दुराव न छल कपट
  सीधी सादी हैं  दोनों
 वे आइना   दिल की  
जो सच है उसी का साथ देती हैं
तभी तो उन पर सदा
मर मिटने को जी चाहता है
शबनमी अश्रुओं को
चूमने को दिल चाहता है
उनमें कोई परिवर्तन न होता 
जैसे हैं वैसे ही रहें
यही मेरा मन भी चाहता  |
आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-03-2019) को "आँसुओं की मुल्क को सौगात दी है" (चर्चा अंक-3272) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुप्रभात
    सूचना के लिए आभार सर

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  3. आँखें मन का आइना होती हैं ! जितना निर्मल निश्छल मन उतनी ही प्यारी आँखें ! तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है !

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  4. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

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