13 दिसंबर, 2020

यह मैंने क्या किया ?

 

हाथों से समय  फिसल गया  

हो गया निश्प्रह निष्क्रीय प्राणी

बन कर  नियति के हाथों का खिलोना

मन मसोस कर रह गया |

इतना कमजोर पहले कभी न था

कितनी भी समस्याएँ आईं

उनसे मुंह न मोड़ा

 डट कर सामना किया उनका

पीठ फेर उनसे कभी भागा नहीं |

 इस बार  जाने क्यों

किसी ने सचेत न किया  

 मैं अंतरात्मा  की आवाज

 तक न सुन पाया |

यह भूल हुई कैसे  अनजाने में

समझ नहीं पाया

अब पश्च्याताप हो रहा है  

यह मैंने क्या किया ?

                                               आशा

17 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 14 दिसंबर 2020 को 'जल का स्रोत अपार कहाँ है' (चर्चा अंक 3915) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. समय निकल ही जाता है
    बगैर समय के आदमी रह जाता है खाली ख़ाका, जिससे कुछ ना हो पाता फिर।
    बहुत सुंदर ।
    नई रचना- समानता

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  3. सुप्रभात
    मेरी रचना की सूचना के लिए आभार यशोदा जी |

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  4. समय किसी की प्रतीक्षा कहाँ करता है ,बहुतसुन्दर सृजन।

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  5. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद जी |

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  6. सुन्दर रचना ! जब तू जागे तभी सवेरा !

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  7. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद साधना |

    जवाब देंहटाएं

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