एक राजा के दो बेटी थीं|एक का नाम चंचल और छोटी का नाम संजा था |रोज उन्हें पढाने एक
शिक्षक आते थे |वे चंचल को नेक वक्त और संजा को कम वक्त कहते थे |जब भी रानी यह सुनती
उसे बहुत बुरा लगता |आखिर उसने गुरूजी से पूँछ ही लिया की वे ऐसा क्यों कहते है | वे बोले संजा बहुत
भाग्य हीन है |यह सुन कर माँ को बहुत बुरा लगा |उसने संजा की बुरी छाया से सब को बचाने के लिए
जंगल में अपनी बेटी के साथ रहने का निश्चय किया |रात के अँधेरे में ,संजा को ले कर वह जंगल की और
चल पड़ी | थोड़ी दूर जाने पर भयंकर काली रात में जंगली जानवरों की आवाज ,उबड खाबड़ रास्ते पर चलना
दूभर हो गया |संजा को जोर से प्यास लगी |माँ बेटी पानी की तलाश में इधर उधर भटकने लगीं |
काफी दूर उन्हें एक बड़ा दरवाजा नजर आया |संजा ने माँ से कहा की वह अभी पानी ले कर आती है |
संजा ने जैसे ही उस घर में प्रवेश किया ,दरवाजा अपनेआप बंद हो गया |
बहुत कोशिश करने पर भी दरवाजा नहीं खुला |हार थक कर माता उसे अपनी किस्मत के भरोसे छोड़ कर
घर लौट गई |
संजा ने देखा की वहां कोई नहीं था |उसने धीरे धीरे एक कक्षा में कदम रखे |वहां एक पलंग पर सुइयों से
भरी हुई एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी |वह पलंग के नजदीक बैठ कर धीरे धीरे उन सुइयों को निकलने लगी |
एक दिन राह पर चलते किसी कीआवाज सुन वह ऊपर बरामदे में गई |बेचने वाला एक दासी को बेच रहा था |
अपने अकेले पन से तंग आकर संजा ने उसे खरीद लिया |बांदी का नाम रानी था |वह भी संजा की मदद करने लगी |एक सुबह संजा नहाने जाने के पहिले बोली की अब तुम कोई सी भी सुई न निकलना |बांदी को उत्सुकता हुई और
उसने आँखों पर लगी दोनो सुई भी निकल दीं |वह राजकुमार राम राम कर उठ बैठा |सामने एक लड़की को देख
उसका नाम जानना चाहा | बांदी थी बहुत चालक |वह राजकुमारी बन बैठी और संजा को अपनी नौकरानी बताया |
एक और करिश्मा हुआ |जैसे ही राज कुमार ने ताली बजाई ,सारे महल में चहलपहल हो गई |पर संजा नौकरानी ही बन कर रह गई |एक दिन राज कुमार मेले में जा रहा था |उसने सबसे अपनी अपनी पसंद की चीज मंगाने को कहा |रानी बनी बांदी ने अपने लिए छल्ले व् चुटील लाने को कहा | |पर संजा ने कठपुतली मंगाई |
अब रोज रात को कठपुतली का नाच होता |संजा कभी हंसती कभीं रोती और गाती "रानी थी सो बांदी हुई ,
बांदी थी सो रानी हुई "|संजा की आवाज बहुत मीठी थी |लोगों ने राजकुमार से पूंछा "इतनी रात गए कौन
गाता है |राजकुमार ने नींद से बचे रह कर अपनी ऊँगली काट ली और जाग कर गाने की राह देखने लगा
कुछ समय भी न बीता था कि उसे संजा की मधुर आवाज सुनाई दी| वह नीचे आया और इस गाने का रहस्य
जानना चाहा |संजा ने सारा राज उजागर कर दिया|राजकुमार को बहुत गुस्सा आया |उसने दरवाजे के ठीकसामने एक गड्ढा खुदवाया |नकली बनी राजकुमारी को उसमें जिन्दा गढ़वा दिया |
संजा के साथ शादी कर सुख से रहने लगा |
संजा के पिता को जब पता चला ,वे अपने आप को रोक न सके और बहुतसे उपहार ले कर अपनी बेटी से
मिलने आए | उसकी सम्पन्नता देख कर उनकी आँखे ख़ुशी से भीग गई |बच्चे का कोई भी नाम
लिया जाए ,जरुरी नहीं कि उसका प्रभाव जीवन पर होता है |
आशा
Bahut dino ke baad meine koi aise Kahani padhi.
जवाब देंहटाएंMain bachpan mein "Nandan" padhta tha. Har mahine us book ko padhne ka nasha rehta tha. Ghar pe jisk wo pehle milti, so poori khatama kar ke hi uthta tha.
Thanks for reminding my old days
Smiles :)
Prashant
बहुत ही अच्छी कहानी | पाठक के मन को किसी और ही दुनिया में बहा कर ले जाने में पूरी तरह से सक्षम | इसी तरह लिखती रहिये |
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कहानी
जवाब देंहटाएंnanaskar asha ji pehli bar blog par aay ahoon
जवाब देंहटाएंbahut hi acha laga..