आया महीना फागुन का
मौसम रंगीन होने लगा
ठंडक भी कम हो गयी
सडकों पर रौनक होने लगी |
बच्चों ने जताया हक अपना
वे गली आबाद करने लगे
फिर भी चिंता परीक्षा की
मन ही मन में सताने लगी |
जैसे ही आई आवाज कोई
मन उसी ओर जाने लगा
वे भूले कॉपी और किताब
बन गया विकेट ईंटों का |
हुई प्रारम्भ बौलिंग और फील्डिंग
रनों ने भी गति पकड़ी
चोकों ,छक्को की झड़ी लगी |
पर आई माँ की आवाज
तुम जल्दी चलो अब घर में
चित्त लगाओ अब पढ़ने में
दुखी मन से जब घर पहुंचे
बस्ते अपने सजाने लगे |
पास पार्क के कौने में
आम पर बैठी कोयल
कुहूक कर मन खीच रही
कच्ची कैरी से लदा पेड़
मन वहाँ जाने का हुआ
जैसे ही एक अमिया तोड़ी
माली की वर्जना सहनी पड़ी |
दौड़े भागे घर को आए
फिर से किताब में खोए
गुजिया,पपड़ी की खुशबू ने
पहुचा दिया अब चौके में
माँ मुझको गुजिया दे दो
बार बार जिद करने लगे |
माँ को बहुत गुस्सा आया
बोली त्यौहार अभी नही आया
होली की जब पूजा होगी
तभी इसे खा पाओगे |होली पर यदि रंग खेला
सर्दी और जुखाम झेला
परीक्षा में भी पिछड जाओगे
गुजिया ,पपड़ी भी न पाओगे |
इस परीक्षा के झमेले में
पुस्तकों के मेले में
मन त्यौहार भी न मना पाया
पर देख रंगे रंगाऐ लोगों को
मुझको तो बहुत मजा आया |
जब मुझको देखा मस्ती में
पापा ने आँख दिखा पूंछा
क्या भूल गए कल है परीक्षा
होली तो हर साल मनेगी
रंगों की महफिल भी सजेगी
कम नंबर पर सदा खलेगे
जीवन को बर्बाद करेंगे |
फिर छोड़ कर सब कुछ
अपने कमरे में कैद हुए
केवल किताबों में घुसने लगे
कल की तैयारी करने लगे
अपना बचपन खोने लगे |
आशा
फिर भी चिंता परीक्षा की
मन ही मन में सताने लगी |
जैसे ही आई आवाज कोई
मन उसी ओर जाने लगा
वे भूले कॉपी और किताब
बन गया विकेट ईंटों का |
हुई प्रारम्भ बौलिंग और फील्डिंग
रनों ने भी गति पकड़ी
चोकों ,छक्को की झड़ी लगी |
पर आई माँ की आवाज
तुम जल्दी चलो अब घर में
चित्त लगाओ अब पढ़ने में
दुखी मन से जब घर पहुंचे
बस्ते अपने सजाने लगे |
पास पार्क के कौने में
आम पर बैठी कोयल
कुहूक कर मन खीच रही
कच्ची कैरी से लदा पेड़
मन वहाँ जाने का हुआ
जैसे ही एक अमिया तोड़ी
माली की वर्जना सहनी पड़ी |
दौड़े भागे घर को आए
फिर से किताब में खोए
गुजिया,पपड़ी की खुशबू ने
पहुचा दिया अब चौके में
माँ मुझको गुजिया दे दो
बार बार जिद करने लगे |
माँ को बहुत गुस्सा आया
बोली त्यौहार अभी नही आया
होली की जब पूजा होगी
तभी इसे खा पाओगे |होली पर यदि रंग खेला
सर्दी और जुखाम झेला
परीक्षा में भी पिछड जाओगे
गुजिया ,पपड़ी भी न पाओगे |
इस परीक्षा के झमेले में
पुस्तकों के मेले में
मन त्यौहार भी न मना पाया
पर देख रंगे रंगाऐ लोगों को
मुझको तो बहुत मजा आया |
जब मुझको देखा मस्ती में
पापा ने आँख दिखा पूंछा
क्या भूल गए कल है परीक्षा
होली तो हर साल मनेगी
रंगों की महफिल भी सजेगी
कम नंबर पर सदा खलेगे
जीवन को बर्बाद करेंगे |
फिर छोड़ कर सब कुछ
अपने कमरे में कैद हुए
केवल किताबों में घुसने लगे
कल की तैयारी करने लगे
अपना बचपन खोने लगे |
आशा
BEHTREEN RACHNA
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना । आभार
जवाब देंहटाएंइम्तहान के दिनीं में बालमन की अनुभूतियों का बड़ा सजीव चित्रण किया है | गली मोहल्ले के क्रिकेट के खेल, त्यौहार की हलचल और पकवानों की खुशबू किस तरह से मन को पढ़ाई से दूर खींच कर ले जाती है और इम्तहान का तनाव बच्चों को कैसे उनके मनभावन कार्यक्रमों का आनंद उठाने से वंचित रखता है इसका बखूबी चित्रण किया है आपने | बधाई !
जवाब देंहटाएंऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी...वाह.सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
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