05 मार्च, 2010

सफर जिंदगी का

वह कल बीत गया
जब हुए सपने रंगीन ,
मैंने कोरे कागज पर ,
जब नाम लिखा तेरा ,
कागज पर स्याही मिटी नहीं ,
सूख गई और गहरी हुई ,
लिखी इबारत परवान चढ़ी,
फिर दिल में उतरी और पैठ गई ,
उसे मिटाना सरल नहीं था,
मिट जाये कोई कारण नहीं था ,
जीवन अविराम चलता गया ,
ग्राफ सफलता का बढ़ता गया ,
खुशियों से दामन भरता गया |
जैसे-जैसे उम्र बढ़ी ,
एक दिन बैठे-बैठे ,
मैं सोच रही थी कैसा था कल ,
मैनें देखा झाँक विगत में ,
बीता कल भोला बचपन ,
गुडिया खेली झूला झूली ,
और सुनी कहानी परियों की ,
मैं सोच-सोच मुस्काने लगी ,
हरियाला सावन जब आया ,
लाल चुनरिया तब ओढ़ी,
मन भीगा तन भीग गया ,
जब सुनी किलकारी नन्हीं की ,
जीवन में खुशियाँ आने लगीं ,
मैं दिल खोल खुशी लुटाने लगी |
सब का प्यार दुलार मिला ,
झिलमिल तारों का हार मिला ,
सुखी संसार साकार मिला ,
मैं झूम-झूम कर गाने लगी ,
कब जीवन की शाम हुई ,
ढलती उमर भी सताने लगी ,
कभी हँसी और कभी खुशी ,
बीच-बीच में जाने लगी |
अब यही अभिलाषा बाकी है ,
हर साँस खुशी से भरी रहे ,
आदत मुस्कराने की ,
जो गई नहीं ,
न अब जाये ,
सदा मेरे संग रहे ,
सदा अंत तक हँसती रहूँ ,
मेरा जीवन रंगीन रहे ,
खुशियों से नाता सदा रहे |

आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. तथास्तु ! BE IT SO . ऐसी ही आशावादी रचनायें अच्छी लगती हैं ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! वाह वाह वाह !

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  2. आशा के संचार से रचना है भरपूर।
    चाहत सच्ची हो अगर नहीं खुशी तब दूर।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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