जीवन जीना जब भी चाहा
खुशियों से रहा ना कोई नाता
कष्टों ने परचम फहराया
हर क्षण खुद को घुटता पाया |
जीना सरल नहीं होता
कुछ भी सहल नहीं होता
कितनी भी कोशिश कर लो
सब कुछ प्राप्त नहीं होता |
केवल सुंदर-सुंदर सपने
सपनों में सब लगते अपने
ठोस धरातल पर जब आये
दूर हुए सब रहे ना अपने |
मन में यदि कुछ इच्छा है
हर क्षण एक परीक्षा है
जब कृतसंकल्प वह हो जाये
सीधा लक्ष्य पर जाये
पत्थर को भी पिघलाये |
कामचोर असफल रहता है
मेहनतकश फल पाता है
कठिन परीक्षा होती उसकी
वह नैया पार लगाता है |
पर यह भी उतना ही सच है
जब कोई विपदा आती है
वह निर्बल को दहलाती है
सबल विचलित नहीं होता
कुछ भी हो धैर्य नहीं खोता
जीवन की कठिन पहेली को
वह धीर वीर सुलझाता है
जो भँवर जाल से बच निकले वही शूर वीर कहलाता है |
आशा
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जवाब देंहटाएंhttp://yuvatimes.blogspot.com/2010/03/blog-post_30.html
भवर जाल से बच कर निकले ,
जवाब देंहटाएंवही सूरमा कहलाता है |
बहुत सही कहा आपने ! यही जीवन का चरम सत्य है ! बाधाओं पर विजय पानी है तो सूरमा तो बनना ही होगा ! सार्थक रचना !