दूर शहर के इस कोने में
बहुत व्यस्त वह गृह कार्यों में
जब देखा घर सूना-सूना
वहाँ एक गौरैया आई
ऐसी शांत एकांत जगह
उसके मन को भी भाई
टूटी खिड़की के ऊपर
उसने तिनका-तिनका चुन कर
अपने नीड़ की नींव रखी
और खुशी से इतराई
गृहणी ने जब खिड़की झाड़ी
तिनका-तिनका बिखर गया
ध्वस्त देख नीड़ अपना
चींची कर उड़कर आई
जब चिड़िया की आवाज सुनी
गृहणी निकट उसके आई
टूटा हुआ नीड़ देख कर
उसकी आँख भी भर आई
ऐसा था क्या उस चिड़िया में
मन उसमें जो कैद हुआ
फिर से तिनके किये इकट्ठे
उसी जगह रख कर आई
जब नीड़ बन कर पूर्ण हुआ
मन उसका उत्फुल्ल हुआ
अब रोज श्याम जब होने लगी
चिड़िया पंख समेटे सोने लगी
अपलक देख आना उसका
और सुबह उड़ जाना उसका
मन प्रसन्न सा रहने लगा
गृहणी को राहत देने लगा
एक दिन चिरौटा आया
चिड़ियों ने मन बहलाया
यह क्रम निरंतर जारी था
दृश्य बड़ा मनोहारी था
दोनों दाना चुगते थे
फिर नीड़ में जा घुसते थे
अपने अंडे सेते थे
अण्डों से जब चूजे निकले
अरमान उन्हीं पर वारे
दिन रात उन्ही की रक्षा में
अपने को क्षय करते थे
जब पंखों में ताकत आई
चूजों ने उड़ना सीखा
वे अपनी-अपनी राह गए
फिर से खाली नीड़ हुआ
गौरैया ने यह सब देखा
वह ठगी हुई सी खड़ी हुई थी
शायद यही नियति थी उसकी
इससे वह अनजान नहीं थी
अब गृहणी ने खुद को देखा
गौरैया सा खुदको पाया
बच्चे बड़े हुए और व्यस्त हुए
उसको पूरा ही बिसराया
आसपास अब कोई नहीं था
वही एकांत और उसका साया
खाली चिड़िया का घोंसला
रीता उसका आँगन था
यही प्रकृति की रीत रही है
मन भी उसका भारी था
सब छोड़ गये जब उड़ना आया
कई बार विचारा मन ने
शायद संसार का नियम यही है
एकाकी मन अधिक व्यथित है
पर शाश्वत सत्य यही है |
आशा
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
बहुत बेहतरीन साम्य ढूँढा है आपने ! सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपको बहुत सारी बधाई ! इसी तरह लिखती रहिये !
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